Suprime Court The Last Hope For Justice
बेरोजगार हूँ रोजगार दो मुझे घंटी और अज़ानों के बीच न बाँटो मुझे
अनपढ़ हूँ शिक्षा दो मुझे अपनी गन्दी राजनीति से न छलो मुझे
शिक्षित हूँ फिर भी बेहाल हूँ तुम्हारे बच्चो का भी भार ढोया करता हूँ
लड़ कर भीड़ कर हार कर जो ली हमने शिक्षा बता उसका मैं क्या करूँ
तुम कहते हो तुम भ्रष्ट नही तुम कहते हो तुम्हारे दामन में दाग नही
तो बताओ ये ऊँचे महल ये शानदार सवारी कहा से आयी दौलत सारी
मेरी ईमानदारी से मुझे दो वक़्त की रोटी भी नसीब नही और
तेरी कैसी ईमानदारी है की दौलत की तीनो पहर बरसात हो रही
तुम्हारे बच्चो की शादी में करोड़ो खर्च हो जाते है तुम्हे कोई फर्क नही
मेरे बच्चो की शादी में एक जोड़ी कपडे भी नही और मैं निढ़ाल वही
तुम्हारे बच्चे शानदार महलो में शिक्षा लेने जाते है, और वही
मेरे बच्चो के सर के ऊपर एक छत भी नही, ऐसी गरीबी सबको मिले
मेरी बच्ची भात भात कह कर मर गयी तुम्हारे बच्चे छप्पन भोग खाते है
है विधाता ऐसी ईमानदारी का इनाम यह है तो ऐसी ईमानदारी सबको दे
मुझे भी दे ज़मीं और आसमान को भी दे चिंद और परिन्द को भी दे
जो कहते है भ्रष्टाचार मिटायेंगे वो खुद भ्रष्ट है वो बस हमे मिटायेंगे
यह ऐसा है जैसे शेर खुद बकरी से आ कर कहे मैं शाकाहारी हूँ
मेरी मौत पर भी राजनीति करते है ये मगरमच्छ के आँसू बहाते है ये
तुम्हारे आँसूं तुम्हारे मुआवजे यह सब कुछ तुम्हारा ढ़कोशला है
असल में तुम्हे तो बस गन्दी राजनीति कर मेरा वोट बटोरना है
समझ में नही आता जो चौथा स्तम्भ था उसमे मेरी आवाज़ होनी थी
मगर हाय अफ़सोस वो सरकार से बिक कर उसकी बोलती बोलता है
दो तरह की राजनीति होती है दुनिया में एक अच्छी और एक गन्दी
जब अच्छी हो तो दूध का दरिया बहता है और जब गन्दी हो तो लहू बहता है
संस्थाओं ने खुद अपने आप को सरकार की झोली में ड़ाल दिया और
पत्रकारिता ने अपना ईमान बेच कर सरकारी कोठे से राग अलाप रही है
जिस पत्रकारिता की कलम की वजह से पूरी सरकार हिल जाती थी
आज उसकी नीचे दर्जे की पत्रकारिता से गली का गुंडा भी नही हिलता
सरकार का गुणगान तो ऐसे गा-गा कर ,कर रही है जैसे सब भला है
रोजगार स्वास्थ सुविधा स्कूल कॉलेज सड़क बिजली पानी
यह सब कुछ जनता के घर घर तक जा कर मिल रहा है
तुम्हारी पत्रकारिता से अच्छी तो वैश्या है जिसका जिस्म बिकता है ईमान ज़िंदा है
मगर जहा अँधेरा वहीं उजाला है कुछ पत्रकारों में अभी ईमान ज़िंदा है
*****
Md Danish Ansari
No comments:
Post a Comment