बहुत दिन हो गए मुझे अच्छी नींद लिए रात भर जगता रहता हूँ कभी इस करवट कभी उस करवट कभी मोबाइल में आँखें गड़ा देता हूँ तो कभी कानो में हेड फ़ोन लगा कर गीतों से दिल बहलाने की कोशिश करता हूँ , मगर सच यही है न तो दिल बहलता है और न ही नींद आती है विज्ञान की भाषा में हम इसे अनिद्रा कहेंगे जिसमे व्यक्ति को नींद नही आती कुछ कारणों की वजह से
वजह तो है पर इस वजह को कैसे भला आप और मैं अनिद्रा से जोड़ सकते है भावनाओ के इस उथल पुथल समंदर में भला विज्ञान की नैया कभी तैरी भी है विज्ञान सदियों से मानव मस्तिस्क पर शोध कर रहा है की हमारी भावनाये आखिर जन्म कैसे लेती है ! मैं विज्ञान के खिलाफ नही हूँ मुझे विज्ञान पर उतना ही भरोशा है जितना खुद पर मगर कभी कभी विज्ञान ही हमे भ्रम में ड़ाल कर माया जाल की रचना कर देता है हम समझ नही पाते की आखिर आज जो कुछ भी हमारे साथ हो रहा है आखिर क्यों हो रहा है क्या हमने कोई गलती की है अपने बीते हुए कल में जिसकी सजा हम आज भुगत रहे है या फिर हमने पूर्व नियोजित घटनाओं के ताल मेल को बिगाड़ दिया जिससे हमे यह सारी परेशानियाँ झेलनी पड़ रही है ! अगर हम यह मान ले की जो कुछ भी हो रहा है उसके असली ज़िम्मेदार सिर्फ हम है तो आप इसे कैसे देखते है एक खुशहाल ज़िन्दगी जिसमे पैसो की कोई कमी नही है हर ऐशो आराम की चीज आपके पास मौजूद है जो चाहते है वह आपको मिल रहा है तब आप इस तरह की ज़िन्दगी को क्या अपनी पुरानी मान्यताओं से जोड़ कर देखेंगे जिसमे दुःख ही दुःख थे !
क्या आप इस बात पर यकीं करेंगे पुरे विश्वाश के साथ की आपको जो भी मिला वह सिर्फ ईश्वर के द्वारा दिया गया है या फिर यह मानेंगे की यह सब कुछ आपके अपनी मेहनत का परिणाम है बहुत से लोग इसे ईश्वर का दिया हुआ अच्छा परिणाम कह कर उसका सुख भोगने में व्यस्त हो जायेंगे और बहुत से यह विचार करेंगे की यह उनकी मेहनत का परिणाम है उन्होंने मेहनत की इसी लिए उसे यह सब कुछ मिला मगर, अगर सही तरह से देखा जाये तो इन दोनों ही विचारों पे सवाल उठते है गर यह हमारी ज़िन्दगी का हर फैसला अगर ईश्वर करता है फिर चाहे वह सुख जो या दुःख तो फिर हम इसे ईश्वर की इक्षा मानकर उसे स्वीकार क्यों नही कर लेते है क्योकि ईश्वर तो सबके लिए आसानी ही चाहता है और अगर हम यह मान कर चले की हमने जो हासिल किया वह अपने दम पर हासिल किया तो फिर जब हम दुःख के भागीदारी बनते है तो फिर ईश्वर को क्यों याद किया इस दुःख और सुख के जिम्मेदार तो आप खुद है न तो फिर आप इसे नियंत्रित क्यों नहीं कर सकते वास्तिविकता में मनुष्य हमेशा से स्वार्थी रहा है जब तक उसके साथ अच्छा हो रहा है तो वह उसे अपनी मेहनत का परिणाम मानता है और जब उसके साथ बुरा होता है तो उसे ईश्वर पे लाद कर अपना जी छुड़ा लेना चाहता है !
वह ईश्वर भी जब हमे देखता होगा तो यह कह उठता होगा की नादानो की नादानियाँ भला कब जाएँगी !
अरे हाँ मैं तो भूल ही गया मुझे तो नींद सता रही है अजीब बात है न मैं इतनी देर से स्क्रीन पे नज़रे गड़ाए पोस्ट लिख रहा हूँ और मेरी पलके एक बार भी नींद से नही झपकी जब की दूसरे काम करते जाते ही नींद चारो और से घेर लेती है खैर मुझे लिखना अच्छा लगता है शायद यही वजह होगी ,,,,, तो दोस्तों अगली बार जब आप यह कहे की इसमें ईश्वर की मर्जी थी या ईश्वर ही ऐसा चाहता था तो कुछ देर खुद को रोक कर विचार करे की क्या वाकई ईश्वर ऐसा चाहता था या सिर्फ आपका यह भ्रम मात्र है और जब आप यह कह उठे की यह सिर्फ और सिर्फ आपकी कड़ी मेहनत का परिणाम है तो फिर से इसपे जरूर विचार करे !
लेकिन एक बात आपको अच्छी तरह से यह जान लेना चाहिए की आप ज़िन्दगी में जो भी हासिल करते है चाहे अच्छा या बुरा उसके जिम्मेदार आप कभी भी पूरी तरह से खुद नही हो सकते और न ही ईश्वर और न कोई और , हमारे कार्यों का जो भी परिणाम होता है उस परिणाम में संपूर्ण विश्व भागीदार होता है अगर यकीं नही तो फिर मेरे विचार पर विचार कीजिये !
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