उसकी यादों में फिर हम खोना नही चाहते
बहुत तकलीफ होती है मुझे हर सुबह
जो उसके ख्वाब देखे और उसको करीब नही पाते
ये भी तकलीफ है मुझे दूर उससे रह नही सकते
बाते उनकी करना चाहें मगर करना नही चाहते
अधूरी लकीरे ले कर आया हूँ इस दुनिया में
काश ज़िन्दगी की लकीरे भी मिटा पाते
ये जख्म दीखता नही पर गहरा है
ये उभरता नही मगर अब भी खून निकलता है
सवाल करते है करने वाले क्यों गमगीन हो तुम
ये हंसी ख़ुशी वाला चेहरा क्यों उदास बैठा है
सच कह दूँ अगर तो तेरी बदनामी ही बदनामी है
मगर ये भी काम दिल को कहा जायज ठहरा है
इतना आसन नही होता अपने जख्म छुपाना
रोज़ अपने आसुओं से जख्म को धोना पड़ता है
माँ समझती है हाले दिल मेरा वो बस दुआ करती है
रब की बारगाह में भी दुआ जल्दी कहा कबूल होती है
तेरी ही गलती थी यह मानता है दिल मगर
तू मासूम है पाक है इस बात से कहाँ मुकरता है
सवाल खड़े होते है एक से एक महफ़िल में मुझ पर
जवाब है मेरे पास लेकिन तुझे रुसवा करने से डरता है
आँखों में है नींद मगर हम सोना नही चाहते
दे कोई ऐसी दवा सोये तो उसके ख्वाब न आयें
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Md Danish Ansari
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