सालो बाद हमने रंगो को को हाँथ लगाया
सालो बाद हमने कागज पर रंगो को बिखेरा
जो तस्वीर बनी तो देख कर हैरान हुए हम
इस दिल में तेरी कोई तस्वीर अब भी बाकि है
देख कर उसे रोना आया फिर ठहाके लगाया
हंस पड़ा मैं अपनी ही नादान बेवकूफ़ी पे
उसे भुलाना चाहा जो हमेशा मुझमे ही रहा
मैं भूल गया भला उसे कैसे भुलाया जा सके
जो खुद के ही मन मंदिर में रचा बसा हुआ है
हम तुमसे रूठ सकते है गुस्सा हो सकते है
मगर तुझे या तेरी याद को मिटा नही सकते
सच कहूँ तो तू मेरे वजूद का वो हिस्सा रहा
जो मेरे मरने के बाद भी लोगो को याद रहेगा
सोचते है तुझसे न मिले होते तो ज़िन्दगी कैसी होती
खूबसूरत होती या यूँ ही दुसरो सी आम होती
कभी जो तुझे वक़्त मिला करे तो पढ़ लिया कर
दिल के इन जज्बातों को और साँसों की फरियादों को
मुझे एक पूरी ज़िन्दगी जीनी थी तेरे साथ मगर
अफ़सोस एक साल भी मुझे नसीब न हुआ तेरे साथ
अब बस इस दिल को दिलाशा देते रहते है हम
यही ज़िन्दगी है अंसारी जो न सोचा वह भी होता है
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Md Danish Ansari
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