Tuesday, 23 January 2018

कुछ तो ख्याल है उसे भी अपने रिस्तों का


कुछ तो ख्याल है उसे भी अपने रिस्तों का 
वरना यूँ वो हमसे निगाह न चुराया करती 
परदे की आड़ से करती है वो दीदार हमारा  
वो खुद का दीदार हमे कराया नही करती   
जब भी मिलता हूँ मैं अक्सर उससे तो बस
दूर से ही देख कर हमे गुजर जाया करती
बड़ा खूबसूरत एहसास है मुझे उसके लिए 
क्या वो इन्हे कभी महसूस भी किया करेगी 
सोचता हूँ कह दूँ अपने दिल का सारा हाल 
मगर डरता हूँ क्या वो इनकी कद्र करेगी 
अभी तो उसने मुझे अपनाया भी नही है 
फिर ये खो जाने का डर क्यों है मुझमे 
उसकी सरारती आँखों से छलकता तो है 
इश्क़ है मगर दबी जबां कुछ कहती नही
आँखों ही आँखों से वो बहुत कुछ कहती है 
मगर लफ्ज़ो की जबां में बस ख़ामोशी है 
लफ्ज़ तो बहुत है उसके और मेरे दिल में
वो जज्बात जबां पे कैसे लाये जो दिल में है 
कुछ तो ख्याल है उसे भी अपने रिस्तों का 
वरना यूँ वो हमसे निगाह न चुराया करती 
*****

Md Danish Ansari

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