Thursday, 25 January 2018

एहसास.....


आज वो मुझसे मिलकर मेरे हालात पे खूब रोई 
हम यही सोचते रहे क्या ये वही है जो साथ छोड़ गयी 
मुझसे लग कर वो कुछ इस तरह अश्क़ बार हुई 
ये दिल न चाह कर भी मद्धम से धड़कने लगा क्यूँ 
बहुत मोहब्बत करते थे उनसे आज भी करते है 
मगर अब इस सीने में दिल नही बस उसकी चंद साँसे है 
मेरे चेहरे पे खिलखिलाती हँसी का वहीं पर्दाफ़ाश हो गया 
जब उसने कहा सालो बीत गए है अब भी मर्ज़ वही है 
मुझमे एहसास तो है मगर उन्हें दफ़्न कर रखा है
इन एहसासों ने ही मुझको उससे शै और मात दी थी


तन्हाई में जब कभी उसकी याद आ जाती है न 
तो फुट फुट रोता हूँ जबां पे एक आवाज़ नही होती 
अंदर से चीखें मार मार कर रो रहा होता हूँ 
ये दर्द ये तकलीफ ये मायूसी किसके बदौलत है 
ये एहसास ही है जो मुझे इतना दर्द दे जाते है 
इन एहसासों का दफ़्न हो जाना ही बेहतर था 
तुम क्यों मुझसे मिली और क्यों ये एहसास जागे 
तुमसे मिलकर जितनी ख़ुशी हुई मुझे उस वक़्त
उससे कहीं ज्यादा तकलीफ तुम्हारे जाने के बाद हुई 

*****

Md Danish Ansari

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