Wednesday, 14 March 2018

हमसफ़र | Humsafar Part-8


हम पुलिस स्टेशन पहुँचे और वहा काफी देर तक मुझ से पूछ ताक्ष किया गया उन्होंने मेरा पूरा बयान रिकॉर्ड किया फिर हम वहाँ से निकल कर वापस शबनम के घर गए कुछ वक़्त वहा रुकने के बाद मैं जाने लगा तो शबनम की अम्मी ने रोका ! तुम जाओगे कैसे ? जी ऑटो से , रुको मैं ड्राइवर से कह देती हूँ वो तुम्हे छोड़ आएगा ! जी सुक्रिया पर मैं चले जाऊँगा , नहीं बेटा तुम हमारे लिए इतने दूर से यहाँ तक आये हमारी बच्ची की मदद कर रहे हो हम तुम्हारे लिए इतना भी नहीं कर सकते ! जी ये तो बस मेरा फ़र्ज़ था मेरी जगह कोई और होता तो वह भी वही करता जो मैं कर रहा हूँ , शायद ? खैर मैं तुम्हारी एक नहीं सुनने वाली मैं गफ्फूर से कह देती हूँ वो तुम्हे छोड़ देगा ! ठीक है जैसा आप बेहतर समझे , मैं बाहर निकलने लगा तो फिर से उसकी अम्मी ने रोका अच्छा बेटा रात का खाना तुम हम लोगो के साथ ही खाना मैं गफ्फूर को भेज दूंगी वो तुम्हे लाने के लिए चला जायेगा ! जी इसकी क्या जरुरत थी खामखा आप जहमत उठा रही है मैं होटल में खा लूंगा , अरे बेटा जहमत कैसी तुम जब तक यहाँ हो हमारे मेहमान हो और महमानो का ख्याल रखना तो फ़र्ज़ है हमारा ! जी ठीक है आप जैसा बेहतर समझे चलता हूँ अस्सलाम वालेकुम - वालेकुम अस्सलाम !

मैं कार में बैठ गया गाड़ी चलने लगी और मैंने खिड़की से ऊपर की तरफ देखा तो दोनों ऊपर खड़ी हुई थी मैं बस हल्का सा मुस्कुराया ! रात हुई ड्राइवर के साथ मैं फिर शेख साहब के घर गया वहा सब मेरा इंतज़ार कर रहे थे ! देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ असल में रास्ते में ट्रैफिक जाम था , ये दिल्ली है बेटा ये सब आम बात है चलो तुम आ तो गए बेटी शबनम जाओ इसे हाँथ धुलवा दो खाने के लिए , जी अम्मी ! आईये , हाँथ धोने के बाद सब खाना खाने लगे काफी सारी बाते भी हुई सवालों और जवाबों का दौर चलता रहा खाने के बाद काफी बाते हुई मेरे और शेख शाहब के बिच असल में वो चाहते थे की मैं अदालत के कुछ तौर तरीको और सवालों और जवाबों को थोड़ा समझ लूँ उन्होंने साफ़ कह दिया की तुमने जो देखा वह तो तुम बता चुके हो लेकिन जब अदालत में होंगे तो तुम्हारी बात तभी मायने रखेगी जब तुम हर सवाल का जवाब सवाल को समझ कर बेहतर तरीके से दो मगर याद रहे इन सब से घबरा कर तुम कुछ उल्टा सीधा मत कह देना अगर तुम्हे सवाल समझ न आये तो चुप ही रहना ! मैं काफी देर तक उनकी हर एक बात सुनता रहा !

अच्छा जी अब मैं चलता हूँ काफी देर हो गयी है , ठीक है बेटा जाओ , अगर आप बुरा न माने तो क्या मैं संगीता से मिल सकता हूँ बस ज्यादा कुछ नहीं गुड नाईट कह देता , हाँ क्यों नहीं वो इस वक़्त छत पे होगी जाओ मिल लो -  सुक्रिया ! मैं ऊपर गया तो देखा संगीता रो रही थी मैं थोड़ा रुका और खांसा उसने तुरंत अपने आँसू पोछ लिए और खड़ी हो गयी ! अरे आप कब आये बस अभी थोड़ी देर पहले ही आप रो रही है ? नहीं तो , मुझसे झूट मत बोलिये आपकी आँखे बता रही है सब कुछ ! अरे नहीं वो तो मेरे आँखों में कचरा चला गया था तो उसी की वजह से कुछ आँसूं निकल आये सच सच बताइये क्यों रो रही थी आप आपने मुझे अपना दोस्त बनाया अब अगर आप मुझसे कोई बात छुपाएँगी तो मुझे लगेगा की आप सिर्फ मुझे दोस्त कहती है मानती नहीं है ! ऐसा नहीं है अफ़ज़ल , अगर ऐसा नहीं तो फिर बता दीजिये मुझे कम से कम आपका कुछ मन ही हल्का हो जाये बस कुछ अपने लोग याद आ रहे थे कितनी अजीब बात है न आज मेरे अपनों को ही मुझ पर भरोशा नहीं की मैं सच बोल रही हूँ और एक अंकल आंटी है जब उन्हें पता चला तो उन्होंने मुझे सपोर्ट किया अजीब है न कभी कभी खून के रिश्ते पराये से हो जाते है और कभी मुँह बोले रिश्ते खून के रिस्तों से भी ख़ास हो जाते है ! ये तो लोगो पर निर्भर करता है संगीता की वो अपने रिस्तों को कितनी अच्छी तरह से निभाते है और एक दूसरे को समझते है खैर तुम दुखी मत हो एक बार तुम ये कॅश जीत जाओ फिर सब तुम्हे अपना लेंगे ! पता नहीं शायद मेरे अपने मुझे अपना ले मगर क्या ये समाज और उसके लोग मुझे अपनायेंगे वैसे ही जैसे मैं पहले थी ! 

समाज भी तुम्हे आज नहीं तो कल अपना ही लेगा लेकिन किसी के भी तुम्हे अपनाने से पहले तुम्हे खुद अपने आप को अपनाना होगा अगर तुम खुद को नहीं अपना पाई फिर चाहे पूरी दुनिया तुम्हे अपना ले फिर भी तुम खुश नहीं रह सकती इसी लिए पहले खुद को अपनाओ ! तुम्हे ये अच्छी तरह से पता है की जो कुछ हुआ उसमे तुम्हारी गलती नहीं थी तुमने मना किया था उसे पर वो न रुका तुम्हारे इक्षा के विरुद्ध वह सब कुछ हुआ तो फिर बताओ मुझे किस आधार पर तुम अपने आप को दोषी ठहराओगी ! याद रहे संगीता तुम अकेली नहीं हो हम सब तुम्हारे साथ है मैं सिर्फ इतना ही कहूँगा तुम हमारे हार मानने से पहले हार मत मानना देखो समाज तो पहले ही तुम्हे हारा हुआ समझता है तो क्यों न तुम ऐसे लड़ो अपने हक़ के लिए की एक मिशाल क़ायम हो जाये ! शायद तुम सही कह रहे हो ? अगर मैं सही कह रहा हूँ तो चलो ये आँसूं पोछो और खबरदार जो तुम फिर किसी के सामने या अकेले में रोई ! उसने हाँ में सर हिलाते हुए सर निचे कर ली 

अरे इतना लेट हो गया मुझे अब चलना चाहिए अच्छा अब इजाजत दे मुझे काफी देर हो गयी है और कल कोर्ट भी तो जाना है ! ठीक है चलिए मैं आपको निचे तक छोड़ आती हूँ ! सब लोग मुझे गेट तक छोड़ने आये बस एक शबनम ही नहीं थी उनमे मैंने पूछा तो उसकी अम्मी ने कहा वो आज जल्दी सो गयी है बस इसी लिए ,  ठीक है अब मैं चलता हूँ सबको सलाम करके मैं गाडी में बैठ गया और सबको बाए कर ही रहा था की शबनम ऊपर अपने टेरिस पे कड़ी हुई दिखी मैंने उसे देखते हुए अदब से थोड़ा सर को झुका कर सलाम किया उसने भी वही से मुझे सलाम की और फिर गाड़ी चल पड़ी होटल की तरफ जहा मैं ठहरा हुआ था !

*****

कहानी आगे जारी है। .........

नोट :- अगर आपने हमसफ़र का सातवाँ भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पे क्लिक करें
________________________________________________________________-
Md Danish Ansari

No comments:

Post a Comment