औरत ये शब्द सुनते ही आपके मन मस्तिष्क में किसका चेहरा उभर कर आता है शायद माँ का, कहते है माँ ही वो जात है जो अपनी औलाद से बगैर स्वार्थ के मोहब्बत करती है और कोई नहीं बाकि सभी रिस्तो में कुछ न कुछ स्वार्थ होता ही है ! अब इस बात या विचार में कितना सत्य है और कितना झूट मैं नहीं जानता मैं तो बस इतना जानता हूँ की मेरी माँ मेरी परवाह करती है ! हर वक़्त बस हमारे बारे में सोचती है हमारे लिए जीती है कभी कभी तो ऐसा लगता है की ये माँ का कोई अपना वजूद भी है की नहीं बेशक उसी ने बच्चो को इस दुनिया में लाया मगर उसकी ज़िन्दगी उन्ही बच्चों के इर्द गिर्द घूमती रहती है और उन्हें पता भी नहीं चलता की कब वो उम्र के एक छोर से दूसरे छोर पर आ खड़ी हुई है !
सुना है औरत को कोई नहीं जान सकता और न ही उसके मन की अथाह गहराई को कोई माप सकता है पर ऐसा क्यों है ! शायद इसकी वजह यह रही हो की हमने कभी औरतो को अपने घर में और बाहर ऐसा माहौल बना कर ही नहीं दिया जिसमे वो अपनी बाते खुल कर रख सके ! कभी कभी जब वो अपनी बात रखती भी है तो घर और समाज दोनों बवाल करने लगते है यह सिर्फ किसी एक घर की कहानी नहीं और न ही किसी एक मुल्क की बात है यह हर तरह के समाज में आप देख सकते है फिर चाहे वह समाज या मुल्क कितना ही तरक्की पसंद हो या फिर कितना ही पिछड़ा हुआ ! अक्सर महिलाओं के कपड़ो को लेकर लोग जज करते है कमैंट्स पास करते है फिर उन्ही महिलाओं पे सबसे ज्यादा पुरुष फ़िदा भी होते है भले ही वह सिर्फ जिस्मानी जरूरियात लिए ही हो ! इससे एक बात तो तय होती है की हर वह पुरुष जो महिलाओं के छोटे कपडे पर ऐतराज जताता है मगर वही पुरुष अक्सर छोटे कपडे पहनी हुई औरतो पर डोरे डालता है तो वह उस औरत को सिर्फ अपने बिस्तर तक ही लाना चाहता है न की उसे अपनी बीवी बनाना !
ऐसे पुरुष सही मायनो में ढोंगी है जो समाज और घर परिवार में शराफत का मुखौटा ओढ़े रहते है और मौका मिलने पर सबसे पहले कपड़े उतारने में आगे होते है ! विद्या बालन जी की डर्टी पिक्चर में एक लाइन उन्होंने कही थी जब औरत अपने कपड़े उतारती है न तो सबसे ज्यादा मज़ा शरीफों को ही आता है ! मैं बस इतना कहूँगा की अगर कोई पुरुष इस लेख को पढ़ रहा है तो एक बार वो आत्म मथन जरूर करें की जिस तरह वो दुसरो की माँ और बहनों के साथ हमबिस्तरी होने को बेताब है तो क्या वो इस बात को भी तवज्जो देते हुए प्यार से क़बूल करेंगे की कोई और मर्द उनकी माँ बहन के साथ हमबिस्तरी हो ! यहाँ एक बात औरतों के लिए भी है जब आप अपना तन मन किसी को सौपने जा रही हो तो उससे पहले सामने वाले से ये जरूर पूछ लीजियेगा की जिस तरह मैं तुमसे मोहब्बत करती हूँ और तुम्हे अपना सब कुछ देने जा रही हूँ तो क्या तुम इस बात को स्वीकार करते हो की कल को अगर तुम्हारी बहन भी किसी को अपना सब कुछ सौपे अपनी मर्जी से तो तुम्हे उस पर कोई ऐतराज नहीं होगा ! अगर वह इस बात पे गुस्सा करें और आप पर चिल्लाये तो फिर अब आपकी मर्जी है की इसके बावजुद भी अगर आप उसे अपना सब कुछ सौंपना चाहती हो तो सौंप सकती हो ! लेकिन जहाँ तक मैं देख रहा वहा सिर्फ औरत की हार हुई है और हर उस पुरुष की जीत हुई जो औरत को अपनी निजी सम्पत्ति समझता है और सिर्फ एक सम्भोग मात्र वस्तु जो हाड़ मास से ज्यादा कुछ नहीं ! जिसमे न तो आत्मा है न कोई सोच न कोई भावना और न ही आत्म सम्मान वाली कोई और बात और हाँ प्लीज दुबारा फिर कभी औरतों के हक़ और उनकी बाते मत करियेगा क्योकि आप इस लायक नहीं रही क्योकि आप खुद औरत की हमदर्द नहीं बल्कि उसकी खुली दुश्मन है !
मेरे मुस्लिम भाइयों से सिर्फ इतना कहना चाहूँगा की अपने घर की औरतों और बाहर की औरतों पर पर्दा करने का पैगाम देने से पहले यह जरूर याद रखना औरतों को परदे के हुक्म से पहले खुदा ने तुम्हे अपनी नज़रों पर पर्दा करने का हुक्म दिया है ! मगर अफ़सोस मर्दों ने अपने नज़रों से पर्दा गिरा दिया और औरतों से इस बात की उम्मीद कर रहे है की वो पर्दा करें वाह क्या दोगलापन है खुद के चेहरे में कालिख लगी है और दूसरों को आइना दिखाते चल रहे है ! तुम अपनी आँखों पर पर्दा करों अपनी बहन से भी जब मीलों तो अपनी नज़रें नीची रखों पहले खुद का किरदार ऐसा बनाओं फिर अपने घर की औरतों से बाकि चीजों की उम्मीद करना अगर वो करना चाहे तो ठीक अगर न करना चाहे तो अल्लाह के हवाले क्योकि तुम्हारा अमाल और अमल तुम्हारे साथ और उनका उनके साथ ! मैं यहाँ किसी और धर्म के धार्मिक बातों का इस लिए उल्लेख नहीं कर रहा क्योकि मुझे नहीं लगता की यह सही होगा कही अगर भूल हो गयी तो खामखा का बवाल कौन अपने सर पे ले लेकिन इतना तो कह ही सकता हूँ की अगर औरत को देवी का स्वरुप मानते हो तो फिर उनसे अच्छा व्यवहार भी कीजिये किसी भूखे भेड़िये की तरह लार टपकाना बंद कीजिये !
वो मर्द जो औरत को नोच लेना चाहते है उसके जिस्म के हर एक गोस्त को नोचने के लिए लार टपका रहे नज़रों में हवस इतनी है की कुछ और नहीं देख पा रहे है तो उनसे सिर्फ इतना कहूँगा अगर दूसरों की बहन तुम्हे नज़र आ रही है तो दूसरों को भी तुम्हारी माँ और बहने नज़र आ रही है अगर तुम हैवान बन सकते हो तो भूलना मत उन्हें भी अपने अंदर के शैतान को बाहर लाने में कुछ ख़ास वक़्त नहीं लगेगा मगर इन सब के बिच तो अदरक की तरह औरत ही है अब यह औरतों पर है की वह क्या होना चाहती है अदरक या सही मायनों में औरत , एक ऐसी औरत जो अपने हक़ की लड़ाई खुद लड़े न की किसी से मदद की उम्मीद मैं बैठे रहे की कोई आएगा और उनसे कहेगा मैं तुम्हारे साथ हूँ तुम लड़ो ! भाड़ में गयी दुनिया और दुनिया वालो की मदद अगर तुम खुद की मदद नहीं कर सकती तो ईश्वर भी तुम्हारी मदद नहीं कर सकता !
दुनिया भर की औरतों को समर्पित जो अपने अपने हक़ की लड़ाई लड़ रही है फिर चाहे वह छोटी लड़ाई हो या बड़ी उन्हें भी समर्पित जो खूब लड़ी और हार गयी मगर कोशिश जरूर की बिना कोशिश किये हार जाने से बेहतर है कोशिश करते हुए शिकस्त हो जाना !
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Md Danish Ansari
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