Tuesday, 6 March 2018

हमसफ़र | Humsafar Part-7


अगली सुबह मैं दिल्ली के लिए रवाना हो गया मैंने एक होटल में कमरा बुक किया फ्रेश हुआ और संगीता को कॉल किया ! हाँ अफ़ज़ल जी कैसे है आप इतनी सुबह कैसे कॉल कर दिया आपने ? मैं दिल्ली में हूँ ! क्या आप मजाक कर रहे है , है न! जी नहीं मैं वाकई दिल्ली में हूँ और महाराजा पैलेस में ठहरा हूँ !  अब आप मुझे बताइये की मुझे आगे क्या करना है ? आप वही रुकिए मैं खुद आपके पास आती हूँ ! मैं तब तक नहा धो कर फ्रेश हो गया करीब ग्यारह पैतालीस पे डोर बेल बजी मैंने दरवाजा खोला तो एक लड़की सामने खड़ी थी , जी कहिये ? तभी साइड से वो सामने आयी ! ये मेरी नज़रो का धोखा था या फिर मैं इतने सालो बाद संगीता को देख रहा था उसका असर वह पहले से बहुत ज्यादा बदल चुकी थी और काफी खूबसूरत भी लग रही थी ! गुड मॉर्निंग , उसने कहा ! मैंने रिप्लाई किया , कैसी है आप ? अब सारी बाते यही दरवाजे पर करोगे या हमें अंदर भी आने के लिए कहोगे ? ओह सॉरी , प्लीज आईये न अंदर बैठ कर बाते करते है ! वो अंदर दोनों अंदर आयी , अफ़ज़ल ये है मेरी सहेली शबनम ! सलाम वालेकुम , वालेकुम सलाम प्लीज् आप लोग बैठिये न।   क्या लेंगी आप दोनों कॉफी या चाय ? जी सुक्रिया हम घर पे पी लिए है ! 
तो अब बताइये मुझे क्या करना होगा ? अगर आप तैयार हो तो आप हमारे साथ चलिए वकील से पहले आपको मिलाना वो जो भी पूछे आप उसका सीधा सीधा जवाब दीजियेगा उसके बाद ही वही बताएँगे की आगे हमे अब क्या करना है ! जी ठीक है। 
हम होटल से निकल गए बहार संगीता की सहेली गाड़ी में पीछे बैठी थी ! ये कार किसकी है ? मेरी सहेली की आइये ! मैं आगे की सीट पर बैठ गया और संगीता और उसकी सहेली पीछे बैठ गयी , शबनम ने कहा - गफूर भाई घर चलिए ? आपने तो कहा था की वकील से मिलने जा रहे है ! जी हाँ वही तो जा रहे है मेरे अब्बा वकील है और वही संगीता का केस लड़ रहे है तो अब हम चले ! जी ! मैं शबनम के घर गया वह उन्होंने मुझे शबनम के अब्बा से मिलवाया उन्होंने तो सलाम और दुआ के बात पुरे सवालों का लाइन लगा दिया उनके सवालो का जवाब देते देते मुझे जोरो की भूख लग गयी नास्ता भी नहीं किया था वैसे भी दोपहर के खाने का वक़्त तो हो ही गया था ! जब उनके सवालों और जवाबों का दौर ख़त्म हुआ तो फिर उन्होंने मुझे खाने पे दावत दिया वैसे भी मैं अंदर से बहुत ज्यादा भूखा था मगर क्या करता तहज़ीब नाम की भी कोई चीज़ होती है पहले तो मैंने मना कर दिया फिर उन्होंने मुझे दावत दिया तो फिर मैं मान गया हम खाने के टेबल पे थे खाना लगा और सब खाना शुरू कर दिए और मैं उन्हें देखता रहा ! वो इसलिए क्योकि वो छुरी और काँटों और चमचों से खा रहे थे जो मुझे पसंद नहीं मेरा भूख भी नहीं मिटती !
मुझे खाता न देख कर संगीता ने कहा आप कुछ खा क्यों नहीं रहे है कोई दिक्कत है क्या ? जी नहीं ! फिर मैंने न आओ देखा न ताओ सीधा अपने आस्तीन मोड़े और खाना शुरू कर दिया मुझे हाँथों से खाता देख शबनम जी के अब्बा मुस्कुरा बैठे और उनकी अम्मी रसीदा खातून भी मैं पूरा ध्यान खाने में लगाया और बस मजे से खाता रहा बाद में मुझे बहुत बुरा भी लगा और हंसी भी आयी बुरा इसलिए की वो मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे और हंसी इसलिए की मैं खुद पे ही हँसे जा रहा था ! खाना खा लेने के बाद शेख साहब ने कहा की हम कुछ देर के बाद पुलिस स्टेशन जायेंगे वह भी आपको वही बाते बतानी है जो तुमने मुझे बताई है उनका रवैया कड़क भी हो सकता है और नरम भी तुम बोल तो पाओगे न वहाँ वैसे हमारे पास तुम्हारे अपने शहर के पुलिस वालो को दिए बयां की कॉपी तो है लेकिन यहाँ की पुलिस भी तुम्हारा बयां लेगी तो तैयार रहिएगा ? जी बेशक !


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कहानी आगे जारी है। .....

नोट :- अगर आपने हमसफ़र का छटवाँ भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पर क्लिक करें 


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Md Danish Ansari

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