इस भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी में अब मैं खुद को अकेला महसूस करने लगा हूँ ! हर वक़्त मेरे आस पास लोगो का हुजूम होता है मगर फिर भी अकेला महसूस करता हूँ हर रोज एक ही काम घर से दफ्तर और दफ्तर से घर बस इन्ही दो जगहों में मेरी ज़िन्दगी घूंट कर रह गयी है और बड़ी तेजी से वृद्धावस्था की तरफ जा रही है ! मगर मेरा शरीर जवान है मगर उसमे वो जोश नहीं बचा जो युवावस्था में होता है मन जो चंगा होना चाहिए वो उदास है !
पुरानी ज़िन्दगी बहुत याद आती है जेब में रुपये नहीं थे मगर मन खुश था हर समय उमंग से भरा रहता मगर अब वो सारे उमंग कही खो गए है या फिर दब के रह गया है ! ऑफिस का माहौल भी कोई खुशनुमा माहौल नहीं है हर वक़्त बस एक ही शब्द हर किसी के दिमाग और ज़बान पर होती है वो है टारगेट ! दिन गुजरते है हफ्ते में हफ्ते गुजरते हुए महीने में बदल जाते है सब कुछ बदल रहा है अगर नहीं बदलता तो वो है ऑफिस और इस मन की वो अवस्था जिसमे सबका हर्ष और उल्लास दफ़्न हो चूका है ! छोटे शहरों में रोजगार कम होता है और जो होता है उसमे रोजगार देने वाला मालिक इतनी सैलरी भी नहीं देता की उससे किसी का घर अच्छे से चल सके और उसमे भी मालिक यह पूरी कोशिश करते है की उसी कम सैलरी में हम कैसे मजदूरों की मेहनत और हुनर का एक एक बून्द निचोड़ ले फिर चाहे मजदूर या एम्प्लोयी अवसाद से ग्रस्त हो जाये या फिर उसकी सेहत बिगड़ जाये !
मैं अच्छी तरह जानता हूँ की जब आप मेरे इस लेख को पढ़ रहे होंगे तो यह कह रहे या सोच रहे होंगे की अगर काम करने वाली जगह में इतनी ही प्रॉब्लम है तो फिर काम छोड़ क्यों नहीं देते ! यकीं मानिये आप इस लेख को पढ़ने के बाद शायद एक बार या दो बार काम छोड़ने की बात कहे मगर सच यह है की मुझ जैसे लाखो नहीं बल्कि करोड़ों मजदुर और एम्प्लोयी है जिनके दिमाग में हर रोज और दिन भर में कई बार ये ख्याल आता है मगर बेरोजगारी इतनी ज्यादा है की कोई भी इस ख्याल पे अमल करने से डरता है ! मेरे देखते ही देखते मेरे बहुत सारे ऑफिस के एम्प्लोयी काम छोड़ दिए और जब उन्हें कोई काम न मिला तो फिर उसी ऑफिस को ज्वाइन कर लिए ! ऐसा जब होता है तो मालिकों का साहस बढ़ जाता है अपने एम्प्लोयी के शोषण को लेकर उसका खुराफाती दिमाग हर समय नए नए तरीके इजात करता है मजदूरों की पूरी क्षमता को निचोड़ लेने के लिए , मैं आपको इन मालिकों के खुराफाती दिमाग की एक उपज के बारे में बताता हूँ -
आप मुझे बताइये - मान लीजिये आप किसी वजह से महीने के कई दिन ऑफिस नहीं गए क्योकि आप बीमार थे या फिर कोई फॅमिली इशू की वजह से तो जाहिर सी बात है ऐसी स्थिति में आपकी सैलरी कटेगी और यह सही भी है अब आप वापस काम पे आते है और पूरा जी तोड़ मेहनत करते है अपने टारगेट को पूरा करने के लिए और आप पूरा कर भी लेते है ! मगर अब जब बात इंसेंटिव यानि प्रोत्साहन राशि की आती है तो फिर से आपका मालिक आपके इंसेंटिव काट लेता है उतना जितने दिन आपने छुट्टी ली इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आप छुट्टी के लिए आवेदन दे कर गए थे या फिर बिना बताये गए थे बस आप छुट्टी पे थे इस लिए आपका इंसेंटिव यानि प्रोत्साहन राशि काटी जाती है !
अब आप मुझे बताइये क्या यह किसी भी तरीके से न्याय संगत है की एक एम्प्लोयी जो छुट्टी पे था आपने उसकी सैलरी भी काटी और फिर उसका इंसेंटिव भी काटा - इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता की वह मजदुर या एम्प्लोयी छुट्टी बता कर किया था या बिना बताये !
मैं आपसे पूछता हूँ की दुनियाँ भर में जितने भी मजदुर है जितने भी ऑफिस वर्कर है उन्हें इंसेंटिव अटेंडेंस की वजह से मिलती है या उनके टारगेट अचीवमेंट की वजह से , जाहिर है उनके टारगेट अचीवमेंट की वजह से तो फिर छुट्टी करने पर जब मालिक सैलरी से रुपये काट लेता है तो क्या उसे यह अधिकार है की वह उनका इंसेंटिव भी काटे , जाहिर है नहीं ! अब आप में से बहुत से लोग यह सोच रहे होंगे की अगर ऐसा अन्याय हो रहा है तो एम्प्लोयी कोर्ट क्यों नहीं जाता , मगर इसमें भी एम्प्लोयी की ही हार है अगर वह कोर्ट जायेगा तो उसका बहुत सा समय वही गुजर जायेगा वो काम कब करेगा और कमाएगा कैसे क्योकि तब तक तो उसकी नौकरी भी जा चुकी होगी !
मजदुर जल्दी से हड़ताल नहीं करना चाहते क्योकि उन्हें इस बात का अंदाज़ा है की अन्याय के खिलाफ लड़ने वाली सारी बाते और सारी हीरोपंती सिर्फ किताबों में अच्छी लगती है हकीकत की दुनियाँ में नहीं मजदुर अगर एक हो भी जाये तो भी ये मील मालिक सरकार से हाँथ मिला कर इन मजदूरों के हाँथ पैर तोड़वाने का इन्हे बुरी तरह कुचल देने का पूरी कोशिश करते है और इसी बिच मजदूरों और एम्प्लोयी की माली हालत बिगड़ चुकी होती है जो उसे घुटने टेकने पर मजबूर करती है !
जब मजदुर विरोध प्रदर्शन या हड़ताल करता है तो वह न तो पुलिस की मार से टूटता है न ही मील मालिकों के अलग अलग हथकंडो से वह टूटता है तो खुद के अंदर बन रहे उस हालात से जो उसके परिवार को भूखा सोने पर मजबूर कर देते है ! दुनियाँ भर में लोग कुचले जा रहे है और वो पढ़े लिखे लोग जिन्हे यह दायित्व सौंपा गया था की वह हमारे अधिकारों की रक्षा करेंगे वो मालिकों के साथ मिलकर जल्लाद हो गए , सिर्फ कहने और दिखने के लिए ये राम होते है मगर हकीकत में ये रावण से ज्यादा आगे है ! वरना आप खुद सोचिये की जिस नोटबंदी में पुरे मुल्क के लोगो की आय में कमी हुई वही सिर्फ एक प्रतिशत पूंजीपतियों की आय में छब्बीस से सत्ताईस प्रतिशत की वृद्धि हुई क्या आप बता सकते है यह कैसे हुआ होगा ?
यह सिर्फ एक छोटा सा सच्चा उदाहरण था आपके लिए। ........ और इन्ही सब के बिच मैं हर रोज की तरह हारा हुआ थका हुआ और मरा हुआ घर पहुँच जाता हूँ सिर्फ सोने के लिए क्योकि इतनी ताक़त नहीं होती शरीर में की किसी से बात भी की जाये और गलती से किसी ने बात करने की कोशिश की तो ऐसे झुँझला उठता हूँ जैसे पता नहीं कितनी बड़ी बात हो गयी हो !
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Md Danish Ansari
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