मेरे नज़रिये से तो नहीं मगर मेरे इस बात की सहमति से संगीता के ऊपर उँगलियाँ उठेंगी इसी लिए मैंने सोचा की अपने मन में किसी के प्रति भी किसी तरह का विचार या सोच को जन्म देने से बेहतर है की उसके बारे में न सोचा जाये ! मगर लाख कोशिशों के बावजूद भी उन सभी विचारों को मैं रोकने में असमर्थ रहा रात भर बस करवटे बदलता रहा सुबह ऑफिस चला गया ! इसी तरह सप्ताह के चार दिन बीत चुके थे और रात के वक़्त मैं सोने की तैयारी कर ही रहा था की मेरे मोबाइल का रिंग बज उठा मैंने कॉल उठाया और - हेलो कौन ? इतनी जल्दी भूल गए मुझे मेरे लिए तो मुझे यह ऐसा लगता है जैसे ये अभी कल की ही बात हो ! माफ़ कीजियेगा मैंने आपको पहचाना नहीं क्या आप अपना नाम बतायेंगी ? आवाज़ भी भूल गए हो !
आगे कुछ भी कहने से पहले मैं रुका और सोचने लगा की ये कौन हो सकती है तभी मैं बोल पड़ा - तुम आइशा बोल रही हो न ? आइशा ??? आइशा कौन ? अरे मेरा मतलब था तुम संगीता बोल रही हो न ! जी हाँ ! चलो पहचान तो लिया आपने , अरे पहचानता कैसे नहीं ! बाते होती रही और फिर वो सारी बाते भी जो उसके साथ हुई और जो अभी हो रही थी ! संगीता जी अगर मैं आपसे कुछ पूछूँ तो क्या आप उसका सही और साफ़ सुथरे तरीके से जवाब देगी ? हाँ बिलकुल पूछिए ! संगीता जी ऐसा कैसे हो सकता है की जिस लड़के की सगाई हो चुकी हो और उसकी शादी होने वाली हो वह अपनी होने वाली पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार करेगा मुझे तो यकीं ही नहीं हो रहा ! मैं जानती हूँ की आपको यकीन नहीं हो रहा और यकीन मानिये ऐसा सोचने वाले सिर्फ आप अकेले नहीं है मेरे खुद के माँ बाप और रिस्तेदार भी इस बात को स्वीकार नहीं कर रहे !
जब आपके अपने ही आप पर भरोशा न करें तो बताइये भला दूसरे लोग क्यों मेरी बातो पे यकीन करने लगे इसी लिए इसमें आपकी कोई गलती नहीं की आप ऐसा सोच रहे है ! मैं यह तो नहीं कहूँगी की मैं आपको यहाँ बुलाना नहीं चाहती अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मगर मैं आपसे ये भी नहीं कहूँगी की आप यहाँ न आये अगर आप अपनी मर्जी से आते है तो मुझे अच्छा लगेगा की मेरे ज़िन्दगी और मौत के बिच आपने मुझे बचाया और एक नयी ज़िन्दगी दी और अब फिर दुबारा जब मैं मुसीबत में हूँ तो फिर से आपका मुझे साथ मिलेगा ! इसी तरह काफी देर तक बाते होती रही और रात गुजरती रही बातो के दरमियान ही मैंने यह निश्चय कर लिया की मैं वहा जरूर जाऊँगा अगर मेरे वहा होने से किसी को न्याय मिल सकता है तो मुझे जाना ही चाहिए ! अगली सुबह मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। ...............
कहानी आगे जारी है। ........
नोट :- अगर आपने हमसफ़र का पाँचवा भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पर क्लिक करें
जब आपके अपने ही आप पर भरोशा न करें तो बताइये भला दूसरे लोग क्यों मेरी बातो पे यकीन करने लगे इसी लिए इसमें आपकी कोई गलती नहीं की आप ऐसा सोच रहे है ! मैं यह तो नहीं कहूँगी की मैं आपको यहाँ बुलाना नहीं चाहती अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मगर मैं आपसे ये भी नहीं कहूँगी की आप यहाँ न आये अगर आप अपनी मर्जी से आते है तो मुझे अच्छा लगेगा की मेरे ज़िन्दगी और मौत के बिच आपने मुझे बचाया और एक नयी ज़िन्दगी दी और अब फिर दुबारा जब मैं मुसीबत में हूँ तो फिर से आपका मुझे साथ मिलेगा ! इसी तरह काफी देर तक बाते होती रही और रात गुजरती रही बातो के दरमियान ही मैंने यह निश्चय कर लिया की मैं वहा जरूर जाऊँगा अगर मेरे वहा होने से किसी को न्याय मिल सकता है तो मुझे जाना ही चाहिए ! अगली सुबह मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। ...............
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Md Danish Ansari
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