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आप में से कितने ऐसे लोग है जो ऊपर लिखी लाइन से सहमत है ! की मोहब्बत अंधी होती है या मोहब्बत इंसान को अँधा बना देती है ! इससे पहले की आप किसी भी नतीजे पे पहुँचे और अपना पक्ष चुन कर एक दूसरे का विरोध करने लगे उससे पहले मेरे विचारों को पढ़ लीजिये उस पर विचार कर लीजिये उसके बाद खुद का पक्ष चुनिए ! जब एक माँ अपने पुत्र की गलती होने के बावजूद उसे डाँट लगाने के बजाये उसका विरोध करने के बजाये वह उन लोगो में खोट और गलतियाँ निकालने और गिनाने लगती है ! जिन्होंने उसके पुत्र या पुत्री पर आरोप लगाया है या उसके पुत्र ने किसी के प्रति अपराध किया यह जानते हुए भी की मेरा पुत्र गलत है ! इसके बावजूद वह उसका पक्ष लेती है तो आप इसे क्या कहेंगे माँ की ममता या फिर अपनी ममता में अंधी हो चुकी एक माँ जिसे अपने बच्चो में कोई गलती ही नज़र नहीं आती ! जाहिर है इसे पुत्र मोह कहेंगे यानि अपनी ममता में एक माँ अंधी हो चुकी अब वह निष्पक्ष होकर फैसला नहीं दे सकती ! क़ुरआन में कहा गया है की अल्लाह सत्तर माओं से ज्यादा मोहब्बत करता है अपने बन्दों से इस बात से मेरे मन में प्रश्न उठना लाजमी था ! अगर एक माँ अपने बच्चो के खिलाफ कुछ बर्दास्त नहीं करती भले ही उसने कोई अपराध किया हो, इसके बावजूद वह उसका बचाओ करती है तो क्या मेरा रब मुझे नहीं बचाएगा जो मुझे सत्तर माओ से ज्यादा प्रेम करता है !
बहुत से लोग कहेंगे की क्यों नहीं जरूर बचाएगा ! और फिर यहीं प्रश्न उठ खड़ा होता है की अगर मैं किसी का गला काट दूँ तो क्या ईश्वकर मुझे दंड नहीं देगा ? इसका जवाब भी क़ुरान में ही है , बेशक इसमें कोई दो राय नहीं की अल्लाह हम से सत्तर माओं से ज्यादा मोहब्बत करता है ! किन्तु इसके बावजूद अगर आप किसी के प्रति कोई अपराध करते है किसी को ठेस पहुँचाते है तो आप दंड के भागिदार जरूर बनेंगे और उसकी सजा भी जरूर मिलेगी ! तो क्या इसका मतलब हम यह समझे की ईश्वर हमसे सत्तर माओ से अधिक प्रेम नहीं करता यह कहना गलत है की अल्लाह भगवन ईश्वर जिस किसी भी नाम से आप उसे जानते है वह आपको दंड देता है सत्तर माओ से ज्यादा प्रेम नहीं करता ? मगर हमने यहाँ ईश्वर को बिच में लाया है तो फिर यह जानना भी जरुरी है की ईश्वर संतान मोह में नहीं पड़ता ! इसका मतलब यह हुआ की ईश्वर हमसे मोहब्बत तो करता है मगर वह हमारे मोह में नहीं पड़ता इसलिए वह इन सभी इंसानी भाव से मुक्त भी है और उसे इन सब का ज्ञान भी है ! ईश्वर के द्वारा अपनी रचना से किया गया यह प्रेम ही हमे मोहब्बत की झूठी भ्रम पैदा करने वाली अपराध और सच्ची मोहब्बत में फर्क समझाती है !
आप अक्सर ऐसे लोगो को समाज में देख सकते है जिन्होंने मोहब्बत के नाम पर ऐसे ऐसे गुल खिलाये है की पूछो मत ! फिर चाहे वह लड़कियों के द्वारा न कहे जाने पर एक सनकी के द्वारा उस पर तेज़ाब फेकना हो या फिर मोहब्बत के नाम पर अपने ही पति के पीठ पीछे किसी और से सम्बन्ध बनाना हो ! हाल ही में जब सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला दिया की एक स्त्री पुरुष की संपत्ति नहीं होती इसी लिए अब उसके द्वारा किया गया अडल्ट्री एक्टिविटी अपराध नहीं है ! यह फैसला ही अपने आप में पक्ष पात पूर्ण है क्योकि यह तो सही है की एक स्त्री पुरुष की संपत्ति नहीं है जो उस पर अधिकार जमाये किन्तु माननीय सुप्रीम कोर्ट इस आदेश को देते वक़्त यह भूल गए की जब एक पुरुष और स्त्री विवाह बंधन में बंधते है तो उसमे यह वचन भी शामिल होता है की वह दोनों हमेशा एक दूसरे के प्रति वफादार रहेंगे और कभी जीवन में कोई ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो तो आपसी सहमति से विवाह सम्बन्ध का विच्छेद करेंगे ! लेकिन माननीय सुप्रीम कोर्ट ने तो सीधा सीधा यह कह दिया तुम हमारे पीठ पर छुरा घोंपो सनम क्योकि अब हमारा तुम पर कोई अधिकार नहीं !
माननीय सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया उसके विरोध में सिर्फ इस लिए हूँ क्योकि उन्होंने कहा है की महिला पुरुष की संपत्ति नहीं और मैं इस बात से सहमत हूँ मगर जब कोर्ट ने ये कहा की एक महिला अपनी मर्ज़ी से किसी और से सम्बन्ध बना सकती है तब में विरुद्ध में हूँ वो इस लिए ठीक है अगर महिला किसी और से सम्बन्ध बनाना चाहती है बनाये मगर पहले विवाह सम्बन्ध से मुक्त हो जाये क्योकि ऐसे में उसके द्वारा किया गया कोई भी कार्य लौट कर उसके पति तक आने ही है ! बेशक सुप्रीम कोर्ट ने यह जरूर कहा की अगर पति चाहे तो ऐसे में वह महिला से तलाक ले सकता है ! क्या यह अजीब नहीं है की पहले आप ही मेरे दामन में दाग लगाए और फिर खुद ही अपराध मुक्त हो जाये ये कहा का न्याय है सुप्रीम कोर्ट को यह कहना चाहिए था की "एक महिला पुरुष की संपत्ति नहीं होती है ऐसे में एक महिला अपनी सहमति से किसी पुरुष या अन्य के साथ सम्बन्ध बनाना चाहती है तो वह इसके लिए मुक्त है अगर वह अविवाहित है तो अगर कोई महिला विवाहित है और वह फिर भी किसी अन्य व्यक्ति से सम्बन्ध बनाना चाहती है तो इसके लिए उसे पहले अपने विवाहित सम्बन्धो से त्याग करना होगा तलाक देना होगा ताकि पति का मान सम्मान भी बना रहे और महिला की अपनी स्वतंत्रता भी" तब यह बात हजम भी होती और न्याय पूर्ण भी ! अब मैं आपसे फिर से सवाल करता हूँ क्या मोहब्बत अंधी होती है या इंसान मोहब्बत में अँधा हो जाता है या इंसान का अपना स्वार्थ उसे अँधा बना देता है जिसे वह उचित ठहराने के लिए मोहब्बत अंधी होती है या मोहब्बत में इंसान अँधा हो जाता है जैसे दोगली दलीले देता है !
अगर मोहब्बत अंधी होती है अगर मोहब्बत में इंसान अँधा हो जाता है तो फिर अक्षय कुमार ने अपनी फिल्म में कहा था की :- अगर मोहब्बत और जंग में सब जायज है तो फिर लड़कियों पर एसिड फैकने वाले लफुटों की हरकत भी जायज़ है ! और किसी लड़की के न कह देने पर उसका वस्त्र हरण करके उसका रेप कर देना भी जायज़ है क्योकि मोहब्बत अंधी होती है और मोहब्बत में इंसान अँधा होता है ! अब मैं फिर से आपसे वही सवाल पूछता हूँ बताइये मुझे क्या है आपका उत्तर ? आप लोगो का उत्तर चाहे जो भी हो मुझे उसकी परवाह नहीं मगर मेरा उत्तर पढ़ते जाइये जनाब
"न तो मोहब्बत अंधी होती है और न गूंगी बहरी न तो इंसान मोहब्बत में अँधा होता है और न गूंगा बहरा इंसान के अंदर छुपा उसका स्वार्थ उसे अँधा बनाता है ! जिसे सच में किसी से मोहब्बत हो न वो स्वार्थ के लाख अन्धकार फ़ैलाने के बावजूद सच्ची मोहब्बत की रौशनी में रास्ता पा ही लेता है तो इसका अर्थ यह है, न तो पीठ पीछे विश्वास घात करना मोहब्बत है और न ही न कह देने पर तेज़ाब से किसी को जला देना मोहब्बत है और न ही किसी को किसी के लिए मार देने में मोहब्बत है ! मोहब्बत बस एक एहसास है उसे महसूस कीजिये उसे पाने की कोशिश करेंगे तो दूर हो जाएगी और अगर उसे महसूस करते हुए ज़िन्दगी जियेंगे तो करीब आएगी !"
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Md Danish Ansari
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