कुछ टूट रहा कुछ बिखर गया
मुझमे जैसे कोई रेत सा फिसल गया
सिर्फ बाहर को ही शाम होती नहीं यहाँ
एक शाम उतर रही चुपके से मुझमें
स्याह अँधेरा कुछ पल में ही हो जायेगा
वो मुझे अपने गिरफ्त में ले जायेगा
तू आ और रौशनी कर मेरे अंदर
मुझे रास्ता दिखा मुझी को मेरे अंदर
डूब जाये न कही मेरी ज़िन्दगी का सूरज
तू आ और मेरी कुछ तरबियत कर
मैं वक़्त का मारा हुआ हूँ मेरे खुदा
तू अपनी कलम से मेरी हिफाजत कर
मैंने कागज़ के नाओं पे तेरे नाम के सहारे
सफर पर निकल चूका हूँ तेरे ही सहारे
डूबता हूँ तो डूब जाऊँ परवाह नहीं मुझको
तू मुझे कभी याद करे इस दरिया के किनारे
कोई पूछे की ये दरिया कौन सी है
तो कहना एक पागल बन्दे की है
जिसने कागज के नाओं पे मेरा नाम लिखा
लहरों से जा टकराया एक मेरे नाम के सहारे
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Md Danish Ansari
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