माँ ......
Md Danish Ansari
January 31, 2018
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माँ कितना खुबसूरत शब्द है न पर इससे भी खुबसूरत है वो जिसे कहते है माँ
शर्द रातों में जब कभी कम्बल मेरे शरीर से हट जाता है माँ उसे सही करती है
रातों को उठ उठ कर बार बार मुझे देखने आती है उसका लाल सोया की नहीं
उसे कोई परेशानी तो नही ये जानने के लिए वो बैचेन रहती है ऐसी होती है माँ
कई बार कहा है माँ को जब रोटियाँ घट जाती है तो मुझे कम दिया कर खुद खा लिया कर
मगर हर बार ये कह कर बात टाल जाती है के मुझे भूक नहीं है शाम को नास्ता कर लिया
पिता जी जब कभी माँ पर गुस्सा करते है तो बहुत गुस्सा आता है
मगर जब कभी मैं माँ की को कोई बात चिड के कहता हूँ तो पिता जी सामने आते है
इससे ये तो पता चलता है की माँ और बाबा का रिस्ता बहुत गहरा है
उसकी ममता का समुन्दर इतना गहरा है की कोई समझ ही नहीं पाता है
बहुत सताता हूँ उसे कभी किसी चीज को लेकर तो कभी किसी बार को लेकर
अक्सर सोचता हूँ मैं क्या औरत का कोई और रूप भी ऐसा हो सकता है
इससे खुबसूरत जो बेपनाह मोहब्बत करे बदले में कुछ भी न चाहे बस प्यार करे
शायद नहीं कभी नहीं माँ तुझे इतना सताता हूँ तेरी बात नहीं मानता हूँ
फिर भी तू मुझे इतना प्रेम करती है हमेशा मेरा ख्याल करती है हमेशा ध्यान देती है
हर छोटी से छोटी बात याद रखती है मेरी जरूरतों का बदले में कुछ नहीं मांगती है
कभी बाहर जाना हो जाये तो बार बार सामानों के बारे में याद दिलाती रहती है
ये रखा की नहीं वो रखा की नहीं अरे देख तेरी बनियान यहाँ राखी है अरे ये ब्रश
ओ माँ तू सब कुछ करती है मेरे लिए और मैं कुछ भी नहीं करता तेरे लिए
पगली हँस के कहती है तू खुश है न बस वही बहुत है और कुछ नहीं चाहिए मुझे
माँ तुझपे चाहे मैं जितना लिखूं तमाम समुन्दर को स्याही और तमाम वृक्ष को कागज़ बना
के चाहे तो ता उम्र लिखूं मगर सच कहूँ तो तेरी ममता का मैं कभी "म" भी नहीं लिख पाउँगा
माँ अपने इस गुनाहगार बेटे को माफ़ कर देना तेरे दूध का क़र्ज़ नहीं चूका सकता
माँ तू अपने दुध का क़र्ज़ मुझपे माफ़ कर देना तेरे दुध का क़र्ज़ हमसे न अदा होगा माँ
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Md Danish Ansari