Monday, 26 February 2018

Sanwaar Dun.....

February 26, 2018 0 Comments

Sanwaar dun sanwaar dun aaj tujhko sanwaar dun
Hai julf teri uljhi uljhi paas aa tu inhe sanwaar dun

Hai naino me tere gahra neel saagar
Abr ke kaajal se inko ko sanwaar dun

Rafta rafta meri dhadkane hai 
Aaj inse tere naam ko sanwaar dun

Tumhe dekh ke kah rahi hai ye fizaye
Aaj tum itna kaise or kyo mahakti jaaye
  
Bas gayi ho kisi ke man me
Moh rahi ho kyo har dishaye

Sanwaar dun sanwaar dun aaj tujhko sanwaar dun
Hai julf teri uljhi uljhi paas aa tu inhe sanwaar dun

Hanthon me tere hina laga dun
Suraj ki gahri laali usme mila dun

Khanak rahi hai jo hanthon me chudiyan
Aa unhe bhi jara se fulon saza dun 

Paayalo ki chhana chhan chhan
Ko aaj main bijliyon se sanwaar dun 

Sanwaar dun sanwaar dun aaj tujhko sanwaar dun
Hai julf teri uljhi uljhi paas aa tu inhe sanwaar dun 

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Md Danish Ansari

Hum Tere Diwaane.....

February 26, 2018 0 Comments

Jaha se wo gujre us gali ko mahka gaye
Jise bhi wo chhu le use bhi mahka gaye

kya itra se naha kar aayi hai wo is jahan me
yahi kahta hai har koi uska chahne wala

Barso se Qaid tha main khud khud ke andar
Mujhse mile or mujhe khud se aazad kara gaye 

Uski har ek ek ada pe sab apna dil haare hai
Kaun bacha hai shahar me jo ab bhi baki hai

Uske deedar ko khade rahte hai chauk pe diwane
Jab gujarte hai to Nazar chura chura kar dekhte hai 

Ye humse na hoga aye logo ke hum unhe bhula de
Mere to andar se bahar tak usi ki khushboo aati hai 

Wo rach bas gayi hai mujhme kuch is tarah 
Juda karna chahun to khud ko gawan baithun

Main to tera diwana hun tu qabool kar ya na kar
Tumhi se hum hai or Tumhi pe kahani khatm hai

Ye na soch ke kya kahenge ye duniya wale
Tu bas ek baar haan kah kar Aazma le mujhe

Main to bas ek tera diwana hun
Apne hi dhun me magn rahta hun

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Md Danish Ansari

Sunday, 25 February 2018

Baaten

February 25, 2018 0 Comments

khubsurat mausam hai or uspe ye raat ka pahra 
kitni bhi koshish kare teri yaaden aa hi jati hai 

khwabo ka kya hai wo to in aankhon me baste hai 
or jab teri yaad aati hai to mujhe betaab karte hai 

dekho na tapish hai itni ke har koi pareshan hai 
magar main nahi tumne julfon ka saya kiya hai

bahut din huye tumhe dekhne ki meri aarzoo hai
aaj to chand ko bhi kaale abr ne chhupa rakha hai 

kash tum kisi roz yunhi chale aao mere samne 
mujhse kaho ke oye bhul gaye ho ab tum mujhe

bahut si baaten karni hai tumse mujhe
magar jaruri hai ke tum milon pahle ki tarah

khaton ka daur khatm ho chala magar
dil ke jajbaat ab bhi wahi hai tere liye

sharmate ho kya ab bhi mera naam aa jane se
kya ab bhi wahi muskaan tere chehre pe hoti hai

kabhi miloge to bahut si baaten karunga tumse
magar afsos tere samne kuch kahte bhi nahi hai

meri nigahen tum par hoti hai tumhari mujh par
pata nahi in nigahon ne kitni baaten ki hai tumse

Wednesday, 21 February 2018

हमसफ़र - Humsafar Part-6

February 21, 2018 0 Comments

रात भर इस बारे में सोचता रहा की आखिर ये कैसे हो सकता है की जिस लड़के की सगाई हो चुकी हो वही अपनी मंगेतर का बलत्कार करे ? यह सवाल इस लिए नहीं था की मैं आइशा के किरदार पर शक कर रहा था बल्कि यह सवाल उस लड़के पे था जिसपे आइशा यानि संगीता आरोप लगा रही थी ! आप खुद ही जरा सोचिये अगर आपकी सगाई हो चुकी है और कुछ ही महीने बाद अगर आपकी शादी होने वाली है तो क्या आप कभी उस लड़की से बलत्कार करने के बारे में सोचेंगे ? 

मेरे नज़रिये से तो नहीं मगर मेरे इस बात की सहमति से संगीता के ऊपर उँगलियाँ उठेंगी इसी लिए मैंने सोचा की अपने मन में किसी के प्रति भी किसी तरह का विचार या सोच को जन्म देने से बेहतर है की उसके बारे में न सोचा जाये ! मगर लाख कोशिशों के बावजूद भी उन सभी विचारों को मैं रोकने में असमर्थ रहा रात भर बस करवटे बदलता रहा सुबह ऑफिस चला गया ! इसी तरह सप्ताह के चार दिन बीत चुके थे और रात के वक़्त मैं सोने की तैयारी कर ही रहा था की मेरे मोबाइल का रिंग बज उठा मैंने कॉल उठाया और - हेलो कौन ? इतनी जल्दी भूल गए मुझे मेरे लिए तो मुझे यह ऐसा लगता है जैसे ये अभी कल की ही बात हो ! माफ़ कीजियेगा मैंने आपको पहचाना नहीं क्या आप अपना नाम बतायेंगी ? आवाज़ भी भूल गए हो !

आगे कुछ भी कहने से पहले मैं रुका और सोचने लगा की ये कौन हो सकती है तभी मैं बोल पड़ा - तुम आइशा बोल रही हो न ? आइशा ??? आइशा कौन ? अरे मेरा मतलब था तुम संगीता बोल रही हो न ! जी हाँ ! चलो पहचान तो लिया आपने , अरे पहचानता कैसे नहीं ! बाते होती रही और फिर वो सारी बाते भी जो उसके साथ हुई और जो अभी हो रही थी ! संगीता जी अगर मैं आपसे कुछ पूछूँ तो क्या आप उसका सही और साफ़ सुथरे तरीके से जवाब देगी ? हाँ बिलकुल पूछिए ! संगीता जी ऐसा कैसे हो सकता है की जिस लड़के की सगाई हो चुकी हो और उसकी शादी होने वाली हो वह अपनी होने वाली पत्नी के साथ ऐसा व्यवहार करेगा मुझे तो यकीं ही नहीं हो रहा ! मैं जानती हूँ की आपको यकीन नहीं हो रहा और यकीन मानिये ऐसा सोचने वाले सिर्फ आप अकेले नहीं है मेरे खुद के माँ बाप और रिस्तेदार भी इस बात को स्वीकार नहीं कर रहे !

जब आपके अपने ही आप पर भरोशा न करें तो बताइये भला दूसरे लोग क्यों मेरी बातो पे यकीन करने लगे इसी लिए इसमें आपकी कोई गलती नहीं की आप ऐसा सोच रहे है ! मैं यह तो नहीं कहूँगी की मैं आपको यहाँ बुलाना नहीं चाहती अपनी बेगुनाही साबित करने के लिए मगर मैं आपसे ये भी नहीं कहूँगी की आप यहाँ न आये अगर आप अपनी मर्जी से आते है तो मुझे अच्छा लगेगा की मेरे ज़िन्दगी और मौत के बिच आपने मुझे बचाया और एक नयी ज़िन्दगी दी और अब फिर दुबारा जब मैं मुसीबत में हूँ तो फिर से आपका मुझे साथ मिलेगा ! इसी तरह काफी देर तक बाते होती रही और रात गुजरती रही बातो के दरमियान ही मैंने यह निश्चय कर लिया की मैं वहा जरूर जाऊँगा अगर मेरे वहा होने से किसी को न्याय मिल सकता है तो मुझे जाना ही चाहिए ! अगली सुबह मैं दिल्ली के लिए निकल पड़ा। ...............

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कहानी आगे जारी है। ........

नोट :- अगर आपने हमसफ़र का पाँचवा भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पर क्लिक करें 

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Md Danish Ansari

Monday, 19 February 2018

हमसफ़र - Humsafar Part-5

February 19, 2018 0 Comments

करीब तीन साल हो चुके थे उसे यहाँ से गए हुए मेरी ज़िन्दगी पहले की तरह चल रही थी रोज सुबह ऑफिस जाना और शाम को लौट कर खुद खाना बना खा कर सो जाना एक ऐसी ज़िन्दगी जो बेहद आम सी थी नौकरी करने वाले लोगो के बिच खुद के लिए तो वक़्त ही नहीं मिलता कभी , की कभी खुद के बारे में सोच सकूँ ! इस ज़िन्दगी में सब कुछ परफेक्ट नहीं था सिवाए एक के वो था मेरा टाइम टेबल सही वक़्त पे उठना सही वक़्त पे सोना हर काम का एक टाइम बंधा हुआ था और इस टाइम टेबल में मैं ! सब कुछ था मेरे पास अच्छी नौकरी थी घर था बैंक में रुपये थे गाड़ी भी हर जरुरत का सामान मेरे पास था मगर फिर भी खुश नहीं था न अपने अपने आप से और न ही अपने काम और न ही अपनी इस ज़िन्दगी से, रविवार को घर पे अकेला होता तो टीवी देख लेता हॉलीवुड उसके सिवा कभी घूमने निकल जाता तो कुछ दोस्तों से मिल आता ! एक वही तो थे जो मेरा अकेलापन समझते है !

रविवार की रात को मेरे घर पर दस्तक हुई दरवाजा खोला तो इंस्पेक्टर साहब बाहर खड़े हुए थे ! अरे सर आप बताइये कैसे आना हुआ अचानक से यहाँ आने की वजह ? असल में ! अरे अंदर आइये न अंदर बैठ कर बाते करते है ! मैं इस बात से उस वक़्त पूरी तरह अनजान था की मैं किस तूफ़ान को अपने घर के अंदर ला रहा हूँ जो हमेशा के लिए अब मेरी ज़िन्दगी बदल के रख देगा और इन सभी बातो से अनजान मैं उन्हें अंदर ले आया ! क्या लेंगे सर कॉफ़ी या चाय ? अरे नहीं कुछ नहीं दरअसल मैं यहाँ कुछ काम से आया था !  काम से वो भी मुझसे कहिये ? तुम्हे वो लड़की याद संगीता है जिसे तुमने बचाया था ? जी हाँ क्या हुआ उसे वो ठीक तो है न ! नहीं ? मतलब उसे कुछ हुआ है क्या ? दरअसल उसकी खोई हुई याददास्त एक हफ्ते पहले ही वापस लौट आयी है और यही वजह है की मैं तुम्हारे पास आया हूँ मुझे दिल्ली कोर्ट से आर्डर आया है की हम तुम्हे वहा पेश करें ! मुझे पर क्यों ? तुम गवाह हो उस घटना के और तुम्हारी गवाही बेहद अहम् है कोर्ट के लिए ! मगर मामला क्या है ? 

उस घटना से कुछ महीने पहले उस लड़की की सगाई हुई थी और फिर वो लड़की हमे यहाँ मिली अधमरी हालत में अब जब लड़की की याददास्त लौट आयी है तो वह लड़के पे आरोप लगा रही है की उसने उसका बलत्कार किया था और मैं किसी को बता न दूँ इस बारे में इसलिए डर के मारे उसने उसे जान से मारने की पूरी कोशिश की मगर उसकी किश्मत अच्छी थी की वो बच गयी ! पर ऐसा कैसे हो सकता इंस्पेक्टर ? जब मैं उस लड़की को नदी से बाहर निकाल के लाया था तो उसकी के कपडे बिलकुल सही थे कही से फटे नहीं थे उसके जिस्म पे कुछ खरोंचे तो हम सबने देखा था मगर किसी ने भी इस बात पे कुछ कहा नहीं और फिर सबसे बड़ा सवाल तो ये भी है की यहाँ के डॉक्टर ने खुद आपसे कहा था की लड़की के साथ किसी तरह का सेक्सटुअल इंटरकोर्स नहीं हुआ फिर अचानक से यह सब कैसे ? यही तो सवाल है ? जिसका जवाब दिल्ली से यहाँ तक ढूंडा जा रहा है हमने डॉक्टर को हिरासत में ले लिया है और कोर्ट ने तुम्हे भी पेश करने को कहा है ! यानि आप मुझे गिरफ्तार करने आये है नहीं फिलहाल तो नहीं मैं तुम्हे कोर्ट के आर्डर देने आया हूँ अब देख लो तुम्हे अगर जाना है तो जाओ वरना मत जाओ पर एक बार अच्छे से जरूर सोच लेना क्योकि यहाँ किसी की ज़िन्दगी और इन्साफ का सवाल है और तुम उन सभी कड़ी में से एक कड़ी हो जिसके बगैर सवालो के जवाबों तक नहीं पहुंचा जा सकता ! मुझे कुछ वक़्त चाहिए इंस्पेक्टर सोचने के लिए उसके बाद ही मैं कुछ कह सकता हूँ ! ठीक है मैं अब चलता हूँ वैसे केस की अगली सुनवाई एक हफ्ते बाद है अब तुम सोच लो के तुम्हे जाना है या नहीं !

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कहानी आगे जारी है ...........

नोट :- अगर आपने हमसफ़र का चौथा भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पर क्लिक करें 
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Md Danish Ansari

Saturday, 17 February 2018

मूरत .....

February 17, 2018 0 Comments

जल रहा है क्यों चाँद और बुझ गया क्यों सूरज 
प्यासी है क्यों नदियाँ और आँखे क्यों है नम 
ए बादल तु क्यों न बरसे ज़मी को पानी चाहिए 
तप रही ज़मी बुखार से इसे शीतल हवा चाहिए
झुलस गए पेड़ पौधे सुख गयी डाल की हर पत्ती 
ये कैसे हुआ क्यों हुआ यह सवाल हर नज़र पूछती 
ए आसमान क्या तेरे सीने में दिल नहीं है 
नहीं पसीजता जो तेरा दिल तो नम आँखों से
चंद क़तरे बहा दे 
समंदर में है पानी बहुत मगर वो भी तो खारा है 
खुद नदियों से प्यास बुझाये वो भी उम्मीद हारा है 
तड़प तड़प कर मचल रही गर्म हवा गलियारों में 
धमक धमक के उड़ रही है ख़ाक आसमानो में 
धीरे धीरे सब कुछ यहाँ टूट टूट कर बिखर रहा है 
आसमान जल कर गिर रहा तेरे खतों की तरह 
सुख गयी ज़मी उसमे दरारे पड़ गए आईने की तरह 
चाँद काला पड़ गया आसुओं में बहे चेहरे की तरह 
मोहब्बत उल्फत आरज़ू जुस्तजू और फिर शिकायत 
वफ़ा सदाकत सफर शहर ख़ाक और नज़ाकत 
ख्वाब तमन्ना दास्तान और मेरी धड़कन सब कुछ 
यह सब कुछ मिला कर जो मूरत बनी वो तुम थी 
यह सब कुछ मिला कर जो मूरत बनी वो तुम थी 

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Md Danish Ansari

Thursday, 15 February 2018

कसूर .....

February 15, 2018 0 Comments

कुछ तेरी निगाहों का कसूर था कुछ मेरी नज़रों का 
हम तुम यूँही बदनाम हो गए ज़माने में ये खेल दो धड़कते दिलों का था 
हुश्न तो यूँही बेवजह बेवफा हो गयी ज़माने में 
हमने तेरे हुश्न से नही सिर्फ एक तुझसे मोहब्बत किया था 
क्या क्या संभालता मैं भला दिल ,जान ,नज़र और क्या क्या 
मैं तो तेरे पाज़ेब की झनक पे ही दिल हार बेठा था 
तू रुसवा न हो जाये कही ज़माने में इसलिए मैंने 
हर इलज़ाम हर खता खुद पर ही सहरा की तरह पहना था 
ये न कह दे कोई के तुझमे कोई बुराई है 
मैंने खुद को ही दुसरो की नज़रों में गिराए रखा था 
मत सोचो तुम के लोग क्या कहेंगे 
लोग तो खुद ये सोच रहे है की फलाना क्या कहेगा 
आ तू फिर से मेरी बाँहों में ,और टूट के बिखर जा 
आ फिर से मैं तुझपे कोई नई दास्तान लिखूंगा 
कसूर किसका था ये सोचने में वक़्त जाया न कर 
आ जल्दी से सुलह करे मोहब्बत के पल जाया न कर 
उम्र लग जाएगी कसूर और कसूरवारो की तलाश में 
क्यों तड़पे हम खुद एक दुसरे की मोहब्बत की प्यास में 

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Md Danish Ansari

शाम - The SunShine

February 15, 2018 0 Comments

शाम मधहोश होकर रात की आगोश में  डूब रही है 
और हम तेरी याद में धीरे धीरे उतरते ही जा रहे है 
पंक्षी अपने बसेरो पर लौट रहे है धीरे धीरे अब 
हम और गहरे उतर रहे है तेरी यादों के साये में 
दूर कही कोई कलि भी अब खिल कर मुरझा रही 
दिल में बहुत से नए रंग लिए खुद को समेट रही 
तितलियों को देखो दिन भर फूलों पे मंडराते हुए 
अब पेड़ों की शाख पर आराम से सुस्ताने लगी है 
इन वृक्षों को देखो किस तरह शांत हो गए है 
जैसे सूरज ने इन्हे झुलसा दिया हो अपने रूप से 
ये शाम बड़ी खूबसूरत होती है कभी देखा है तुमने 
कभी फुरसत मिले तो आराम से बैठ कर देखना 
बड़ा सुकून मिलता है ये मेरे लिए दवा की तरह है 
जब तुम मुझे छोड़ कर गयी तो अकेला था मैं 
एक रोज़ शाम ने मेरा हाँथ पकड़ कर बैठा लिया मुझे 
उसने कहा कुछ मत देखो बस तुम मुझे देखो 
मैं उसे देखता रहा गौर से और फिर एक जादू हुआ 
मेरा हर गम कुछ वक़्त के लिए मुझसे जुदा हुआ 
मैं बैठे हुए सिर्फ ढलती हुई शाम को देखता रहा 
जैसे स्याह समंदर में कोई नील समंदर खो गया 
तुझे भी कभी वक़्त मिले तो शाम से मिलना 
वह तुझे भी वही सुकून देगा जो सबको दिया है 
शाम मधहोश होकर रात की आगोश में  डूब रही है 
और हम तेरी याद में धीरे धीरे उतरते ही जा रहे है 

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Md Danish Ansari

Monday, 12 February 2018

हमसफ़र - Humsafar Part -4

February 12, 2018 0 Comments

अगली सुबह महिला आयोग के कुछ अधिकारी आये काफी सारी पूछताछ के वो उसे वहा से ले जाने लगे , मैं अपने बेड पर लेटा हुआ था लेटे लेटे ही पता नही मुझे क्या हुआ मैंने उसे पुकारा एक नाम - आयशा मैंने ये नाम जैसे ही लिया सब रुक गए और वो भी , क्या कहा तुमने ? जी मुझे लगा जब तक हमे इसके बारे में कुछ पता नही चलता तब तक के लिए क्यों न हम इसे किसी नाम से पुकारे तो मेरे जहन में बस ये नाम आया आयशा अच्छा है न ! सभी लोग मुझे देखने लगे तभी एक महिला अधिकारी सामने आयी और बोली बहुत खूबसूरत नाम सोचा तुमने वैसे भी कोई नाम तो रखना ही था जब तक हमे इसका असली नाम न पता चल जाये ! महिला अधिकारी मुड़ी और बोली आप में से किसी को ऐतराज तो नही इस नाम से सभी ने कहा नहीं , फिर वो जाने लगे दरवाजा बंद हो गया और वह मुड़ी और एक नज़र देख कर आगे बढ़ गयी !
इन सभी चीजों में सबसे बड़ी बात ये थी की जिस पुलिस का देश के हर कोने से संपर्क रहता है वो जब चाहे जहा चाहे जिसके बारे में जानना चाहते है जान लेते है लेकिन आज तीसरे दिन भी पुलिस को कोई सुचना मिली ही नहीं! हॉस्पिटल से मुझे तीसरे दिन डिस्चार्ज कर दिया गया मैं अपने घर चला गया अभी भी जख्म भरे नही थे पर अब मैं चल फिर ले रहा था ! शाम हुई तो मैं नींद से उठा और फ्रेश होकर अपने लिए चाय बनाने लगा तभी दरवाजे की घंटी बजी, कौन है ? मैं इंस्पेक्टर रणजीत , आ जाइये सर दरवाजा खुला हुआ है !
वो अंदर आये , कहा हो भाई तुम दिख नही रहे हो, इधर हूँ सर चाय बना आप पिएंगे क्यों नही मगर पहले किचन से बाहर आ कर ये तो देख लो हमारे साथ आया कौन है ? आपके साथ कौन हो सकता है सर आपके साथी ही होने है क्यूँ सही कहा न ? कुछ हद सही कहा पर मेरे साथ कांस्टेबल के अलावा भी कोई और है ? अच्छा रुकिए आ रहा हूँ !
जैसे ही बाहर गया हैरान रह गया देख कर आप शायद समझ ही गए होंगे की कौन हो सकता है मगर मैं हैरान इस लिए था क्योकि जिसे मैंने हॉस्पिटल में आखरी बार देखा था और जो अभी देख रहा था उसमे जमीन आसमान का अंतर था , बहुत ही खूबसूरत सफ़ेद रंग उस पर खिल रहा था , अरे आयशा तुम ! गलत इसका नाम आयशा नहीं है इसका नाम कुछ और है ! मतलब ? मतलब ये की हमे पता चल गया है की इसके बारे में सब कुछ इसका नाम इसके परिवार इसका घर सब कुछ ! अच्छा ये तो बहुत ही अच्छी खबर है सर कहा से है ये और क्या नाम है इनका ? इनका नाम है संगीता और ये दिल्ली से है और इनका परिवार वाले कल आकर इन्हे यहाँ से ले जायेंगे ! इनकी यह ख्वाहिश थी की यहाँ से जाने से पहले ये आप से मिलना चाहती थी इसी लिए हम इन्हे यहाँ लेकर आये !
पुलिस वाले और महिला आयोग के अधिकारी उसे मेरे यहाँ छोड़ कर चले गए ये कह कर की हम दस बजे आएंगे इन्हे लेने के लिए मैंने हाँ में सर हिला दिया ! मेरे अंदर जहा ख़ुशी थी की वह मुझसे मिलने आयी है वही इस बात का कही न कही गम भी था की अब उससे कभी मुलाकात नहीं होगी , खैर इन सब बातो की परवाह किये बगैर मैं तो बस उसकी खातिरदारी में लग गया उसने भी मेरा साथ दिया और खाना पकाने में आसानी हो गयी अजीब भी लगा की घर पर आये मेहमान से इस तरह से अपने काम में हाँथ बटवाना पर शायद यह उस वक़्त की परिस्थितियों के हिसाब से लाजमी था क्योकि मैं ठीक से कोई काम नहीं कर पा रहा था !

हमने कुछ ज्यादा बाते नहीं की यह जानते हुए भी की हम दुबारा शायद ही मिले बस कुछ बाते की भी तो काम की उसके अलावा कुछ भी नहीं ! खाना पीना हो गया और अब उसके जाने का वक़्त भी उसे लेने के लिए अधिकारी आ चुके थे मैं समझ ही नहीं पाया की मुझे कैसे रियेक्ट करना चाहिए खुश भी था और कही न कही गमगीन भी जताना नहीं चाह रहा था बस लेकिन छुपाये कहा छुपता है सच ! वो जाने लगी वो दरवाजे पर पहुँची ही थी की मैंने कहा रुकिए जरा आपकी एक अमानत मेरे पास है जिसे आपको लौटाना जरुरी है , मैं जल्दी जल्दी अपने कदम अपने रूम की तरफ बढ़ाने लगा और अपने ड्रा से उसका लॉकेट निकाल लाया जो मुझे उसे हॉस्पिटल के स्ट्रेचर पर लिटाते वक़्त उसके गले से टूट कर मेरे हाँथों में आ गया था ! 
अपना हाँथ आगे करो ! क्यों ? सवाल मत पूछो बस अपना हाँथ आगे करो ! वो अपना हाँथ आगे की और उसके हाँथ में वो लोकेट मैंने रख दिया जब उसने देखा तो बोली ये क्या है , ये तुम्हारा है तुम्हे हॉस्पिटल पहुचाने के बाद ये मेरे पास था जो अब तुम्हे लौटा रहा हूँ ! नहीं मैं इसे नहीं ले सकती , ले लो प्लीज और वैसे भी ये तुम्हारा है , बेशक हो सकता है की ये मेरी हो पर मैं चाहती हूँ की इसे तुम रखो अपने पास मेरी याद के तौर पर , क्या वाकई तुम ऐसा चाहती हो की मैं इसे रखूँ ? हाँ मैं चाहती हूँ की तुम इसे अपने पास रखो कम से कम जब भी तुम इसे देखोगे तो मैं याद रहूँगी !
ओके ठीक है मैं इसे रख लेता हूँ मगर मुझे भी तुम्हे कुछ देना है मैं अपने जेब से एक दूसरा लोकेट निकला जिसमे घडी लगी हुई थी ! मैंने इसे खुद बनाया है तुम्हारे लिए ये उतनी अच्छी तो नहीं बनी है पर मुझे अच्छा लगेगा अगर तुम इसे अपने पास रखो , क्या कह रहे हो तुम ये तो कितनी खुबसूरत बनी है शुक्रिया , शुक्रिया तुम्हारा भी और बस इतना कह कर वो चली गयी !

देखने वाले की आँखों में मेरा ही गीत था 
वो गीत जो हमने कभी उसे सुनाई भी न थी 

कहानी आगे जारी है ...........

नोट :- अगर आपने हमसफ़र का तीसरा भाग नहीं पढ़ा है तो इस लिंक पर क्लिक करें 
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Md Danish Ansari

Friday, 9 February 2018

Kareeb kareeb .....

February 09, 2018 0 Comments


Kareeb kareeb rahte ho tum is tarah 
Jaise dil ki dhadkan or saanse us tarah 
Tujhse na to koi sharm hai or na haya 
Is diwangi ki koi hadd ho to tu bata 
Dekhti ho mujhe hasrato bhari nazro se 
Kya kya chhupa rakha hai kuch to bata 
In hasrato bhari nigahon pe daaw laga 
Dil to kab ka haar chuka ab khud ko laga 
Badi natkhat hai tu kahti kuch or hai 
Or palat kar dekho to ishare kuch or hai 
Janaab aap bhi to kuch kam nahi 
Kahte rahe man bahlane ke liye likhte ho 
or na jane kab humara dil hi lut liya 
dhat pagli dil bhi koi lut lene ki chij hai 
haaye tu kahe to ye dil kya tujhpe jaan lutaun 
sach kahti hun 
Kareeb kareeb rahte ho tum is tarah 
Jaise dil ki dhadkan or saanse us tarah 
ab to sapno me bhi tum hi tum ho 
soye huye bhi hansti rahti hun 
jab jhinjhord ke jaga diya mujhe ghar walo ne 
Tab pata chala ab to bas main Teri hun 
Tum na jara kareeb kareeb raha karo 
Mujhse jyada to tum sharmate ho 
Kya karun pahli pahli mohabbat hai or 
Mujhse bada anaadi pure shahar me nahi hai 
Isi liye darta hun pata nahi kab kaha kis baat pe 
Tu bura maan jaye or mujhse dur ho jaye 
Pagal hai tu ruthna or manana to humesha rahega 
or Kabhi main ruth bhi jaun to tu mujhe mana lena 
Kareeb kareeb rahte ho tum is tarah 
Jaise dil ki dhadkan or saanse us tarah

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Md Danish Ansari

Thursday, 8 February 2018

हमसफ़र - Humsafar Part -3

February 08, 2018 0 Comments

शाम को मैं हॉस्पिटल पहुँचा उस लड़की को देखने पर वो मुझे अपने बेड पर नही दिखी तो मैं रिसेप्शन पर गया और वहा पूछने पर पता चला की उसे तो आधे घंटे पहले ही डिस्चार्ज किया गया है ! उसे यहाँ लेने कौन आया था ? जी कोई नही तो फिर आपने उसे डिस्चार्ज क्यूँ किया आपने पुलिस को कॉल करके बताया की मरीज को आपने यहाँ से डिस्चार्ज किया है ? नही सर , वाह न पुलिस को खबर की न मुझे जब की मेरा नंबर भी मैंने यहाँ छोड़ रखा है ! मैं हॉस्पिटल से बाहर आया और जल्दी से पुलिस को कॉल किया उन्हें सारी बात बताई , मैं उसे ढूंढते हुए लाल चौक पे पहुँचा काफी देर तक ढूढ़ने के बाद भी वो मुझे दिखी नही ! मैं घर की तरफ लौट नही पा रहा था मुझे उसका ख्याल आता और मेरे कदम रुक जाते पुरे शहर में ढूंढते ढूंढते रात हो गयी इस पुरे बिच मैं पुलिस को कॉल करके हालात का जायजा लेता रहा मगर पुलिस के हाँथ भी वह अभी तक नही लगी थी ! मैं समझ नही पा रहा था की वह इतनी जल्दी इस शहर से गुम कैसे हो गयी क्या वो इसी शहर की थी अगर ऐसा होता तो अब तक तो उसके परिवार वाले आ कर उसे ले जा चुके होते मगर पुलिस के हाँथ तो कुछ लगा ही नही था अभी तक ! इसी तरह के सवालों के घेरों के बिच कश्मकश में मैं सर झुकाये चलने लगा पता ही नही चला कब चलते चलते सुनसान सड़क पे आ पहुँचा इस सड़क को लोग ज़्यदातर दिन में ही इस्तेमाल करते है क्योकि रात के वक़्त ये सड़क सुनसान और असामाजिक तत्वों का अड्डा बन जाता है खैर यह सड़क नीलम के किनारे किनारे गुजरती है तो मेरे घर यहाँ से शार्ट कट में पड़ता है ! मैं थक हार कर उसी सड़क पर चलने लगा मन मैं निराशा लिए और बहुत सारे सवाल , तभी किसी लड़की के चिल्लाने की आवाज़ आयी मैं इधर उधर देखने लगा तभी मुझे पेड़ो के पीछे झाड़ियों के बिच मुझे हलचल दिखी फिर जोर की आवाज़ आयी बचाओ मैं दौड़ते हुए उस तरफ भागने लगा जैसे ही वहा पर पहुँचा कुछ लड़के एक लड़की को जकड़े हुए थे मैंने आओ देखा न ताओ सीधा जमीन पर पड़ा पत्थर उठा कर एक बन्दे के सर पे दे मारा बाकि के दो लड़के मेरी तरफ बढे ही थे की पास पड़ी लकड़ी उठा कर पीटना सुरु कर दिया बिना रुके एक पल भी नही रुका बस पीटता रहा उन्हें जानवरो की तरह जैसे मेरे अंदर कोई शैतान बस गया हो तीनो को पीटता रहा पिट पिट कर जब वो अधमरे से हो गए तब जा कर मेरे हाँथ रुके ! मैं पीछे पलटा और उस लड़की से पूछा आप ठीक है मैडम जैसे ही मैं उसे देखा हैरान हो गया जिसे दिन भर ढूंढ़ता रहा वो मिल गयी थी ! मैं उसकी तरफ बढ़ा - शुक्र है खुदा का  मुझे मिल गयी कितनी देर से आपको खोज रहा हूँ ! मैं बिना देर किये पुलिस को सारी बात बताया और मैं उसे वहा से चलने के लिए कहा पर वो जैसे ही आगे बढ़ी दर्द से कराह उठी शायद उन लड़को से हाँथा पाई के दौरान उसके पैरों में मोच आ गयी थी उसे उठा कर रोड की तरफ जाने लगा तभी मेरे पीछे से किसी ने मुझपे वॉर किया पलट कर देखा तो उन्ही में से एक लड़का था मेरा सर हिल गया मैंने उस लड़की को निचे उतारा और उसे भागने के लिए कहा - भागो जल्दी जाओ , तभी उसने मेरे सर पर फिर दे मारा और फिर मैं गिर गया बेहोश होने से पहले तक बस इतना देख पाया की वो उसे फिर से पकड़ लिए है और बस फिर मैं बेहोश हो गया !

होश आया तो हॉस्पिटल में था सर में काफी दर्द और शरीर में भी देखा तो पट्टी बंधी हुई थी तभी मुझे उस लड़की का ख्याल आया - मेरे साथ एक लड़की थी वो कहा है ? डॉक्टर ने सर से इशारा करके मुझे बताया मैं अपने बाजु में देखा तो वो मेरे पास ही मेरे बेड पर सर रखे सो रही थी ! क्या हुआ था इंस्पेक्टर ? तुम्हारे कॉल करने के बाद जब हम वहा पहुँचे तो ये उनसे लड़ रही थी पुलिस की सायरन की आवाज़ सुनकर वो भाग गए हमारी तलाश जारी है वो जल्द ही पकडे जायेंगे  सब लोकल लड़के ही है नशेड़ी ! मैं कितने देर से बेहोश था ? दस घंटे से तुम्हारे सर पे चोट लगी है और तुम्हारे शरीर पर चाकू से किये घाव है तुम्हे आराम करना चाहिए ! डॉक्टर सही कह रहे है तुम आराम करो हम चलते है ! 

तभी वो जाग गयी और वो खड़ी हो गयी , ऑफिसर क्या इनके परिवार वालो की कुछ खबर या इनके बारे में ? अभी तक तो नही पर हमने अखबार में इनकी फोटो दे दिया है जल्द ही कुछ पता चलता है तो आपको बता देंगे , इन्होने कुछ बताया नही आपको ? नही असल में इन्हे कुछ भी याद नही न अपने बारे में और न ही अपने फॅमिली के बारे में इसी लिए हम इन्हे महिला केंद्र में छोड़ आने वाले कुछ कागजी कार्यवाई होनी बाकि है तब तक के लिए ये यही रहेंगी हॉस्पिटल में , पर डॉक्टर ने तो कहा था की ये बिलकुल ठीक है तो फिर ये कैसे हुआ ? असल में शुरू में हमने घाव को ऊपर की तरफ से ही देखा था जो बेहद मामूली था मगर तुम्हारे यहाँ गंभीर हालत में आने के बाद और पुलिस के काफी पूछ ताछ के बाद जब ये जवाब नही दे पाई तो हमने इनके सर का MRI स्कैन किया तब जा कर हमें पता चला की इनके सर पे अंदरूनी चोट भी लगी है जिसकी वजह से इनकी याददास्त खो गयी है मगर अच्छी खबर ये है की जिस हिस्से में इन्हे चोट लगी है वहा चोट लगने पर इंसान की याददाश्त जल्द ही लौट आती है कभी ज्यादा वक़्त भी लगता है मगर ज्यादातर केसेस में याददास्त जल्दी लौट आती है ! आप लोगो से इतनी बड़ी गलती कैसे हो गयी आप डॉक्टर हो की झोला छाप जो अपने मरीज का ठीक से इलाज किये बगैर उसे डिस्चार्ज दे देता है वो भी ऐसे सीरियस मेटर में जहा किसी की ज़िन्दगी दाव पे लगी हुई है ? देखो मिस्टर यहाँ दिन भर रात भर इतने केसेस आते रहते है और वैसे भी ये सरकारी हॉस्पिटल है इससे ज्यादा आप क्या उम्मीद करते है हमने इस लड़की की जान बचाई और जब हमे लगा की यह अब ठीक है हमने डिस्चार्ज कर दिया , बस बस अब आराम करो तुम्हारे जख्मो से खून बहने लगा जो हुआ सो हुआ अब आइंदा से ऐसा न होने पाए इस तरह की घटना डॉक्टर वरना लापरवाही बरतने के जुर्म में मैं आपको अंदर कर दूंगा , ऑफिसर अगर आपको और इन्हे (लड़की) कोई ऐतराज न हो तो ये मेरे साथ रह सकती है ! इसमें हम कुछ नही कह सकते इसका फैसला तो महिला आयोग वाले ही करेंगे की ये आपके साथ रह सकती है या नही ! अब तुम आराम करो हम चलते है - ठीक है सर ! उनके जाने के बाद मैंने उसे देखा और उसने मुझे कुछ देर देखते ही देखते मुझे फिर से नींद आ गयी और मैं सो गया !


कहानी आगे जारी है। .......

नोट :- अगर आप हमसफ़र (Humsafar) का दूसरा भाग नही पढ़े है तो इस लिंक पे क्लिक करें 
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Md Danish Ansari

Wednesday, 7 February 2018

हमसफ़र - Humsafar भाग -2

February 07, 2018 0 Comments

आधे घंटे के बाद पुलिस आयी उन्होंने मेरा बयान लिया लेकिन वो बार बार इसी बात पे अटके हुए थे की तुम देर रात के बाहर दरिया के किनारे कर क्या रहे थे और मैं बार बार उन्हें यह बताता रहा की सर मुझे गर्मी लग रही थी तो मैं बस निकल गया था घर से बाहर मगर वो थे की बस उसी बात पे अटके हुए थे ! उन्होंने मुझसे पूछा उस गाड़ी का क्या जो तुमने पूल से गुजरते हुए देखा था ? मुझे क्या पता उसका क्या हुआ क्या नही ! हमारे कहने का मतलब यह  की वो कार कैसी दिखती थी उसका गाड़ी नंबर क्या था कौन सी कार थी ? सर मैं निचे था साथ ही अँधेरा भी मुझे सिर्फ इतना पता है की वो कार थी सफ़ेद रंग की मुझे कार का नंबर नहीं दिखा ! और तुमने देखने की कोशिश भी नही की ? सर कौन आदमी कार का नंबर देखते फिरता है ? अच्छा !तो फिर कौन आदमी इतनी रात के बाहर एक सुनसान जगह पर घूमने निकलता है और लौटते वक़्त अपने साथ एक अधमरी लड़की को लाता है ? सर आप खामखा मुझ पर शक कर रहे है मुझे थोड़ी पता था के मेरे साथ ये सब होने वाला है मैं तो खुद परेशान हूँ इन सब घटनाओं को लेकर उस पर से आपके ये गोलमोल सवाल मुझे और परेशान कर रहे ! देखिये मिस्टर पुलिस का काम ही है सवाल करना , मैं बस इतना कहना चाहता हूँ सर की प्लीज आप गोलमोल बात न घुमाए बल्कि जो भी पूछना है साफ़ साफ़ पूछिए !

खैर मुझसे काफी देर तक पूछ ताछ होती रही फिर उस लड़की को होश आ गया डॉक्टर ने हमें बुलाया पुलिस ने जब उससे पूछा की उसके साथ आखिर हुआ क्या था उस रात को तो वह कुछ बोली ही नही फिर उन्होंने मुझे सामने लाया और पूछा की क्या तुम इसे जानती हो उसने कहा नही तुम कहा की हो तुम्हारा घर कहा है तुम्हारे घर पता बता सकती हो ताकि हम तुम्हारे घर वालो को तुम्हारे बारे में बता सके ??? पुलिस काफी सारे सवाल करती रही मगर वो किसी भी सवाल का जवाब नही दे रही थी बस बेड पर पड़ी हुई छत की तरफ नज़रे टिकाई हुई पुलिस ने काफी कोशिश की जानकारी हाँसिल करने की मगर वह कुछ बोली ही नही ! सब बाहर आ गए तब इंस्पेक्टर ने डॉक्टर से पूछा आखिर वो कुछ बोल क्यों नही रही है ? देखिये इंस्पेक्टर ऐसा है की लड़की के सर के पीछे की तरफ चोट के निशान तो है मगर वह ज्यादा गहरे नही है लड़की इससे बेहोश तो हुई होगी और मुझे लगता है शायद वह सदमे में है इस वक़्त शायद इसी लिए वह किसी से बात ही नही कर रही है ! डॉक्टर उसे नार्मल होने में कितना टाइम लग जायेगा , कह नही सकते ? फ़िलहाल हम इसे यही हॉस्पिटल में अभी रख रहे है एक दो दिन बाद इसे डिस्चार्ज कर देंगे तब तक शायद वो कुछ हद तक सही हो जाये और आपको आपके सवालों के जवाब भी मिल जायेंगे , ठीक है डॉक्टरहम बिच बिच में आते रहेंगे और अगर आपको कोई ऐसी बात पता चलती है जो हमे जानना जरुरी है तो आप मुझे कॉल करे ! 

पुलिस वाले तो चले गए साथ ही मेरा सारा डिटेल लिए एड्रेस मोबाइल नंबर कहा काम करता हूँ कुछ फिर मुझे भी वो लोग घर छोड़ कर चले गए ! उस दिन मैंने ऑफिस कॉल करके छुट्टी ले लिया कल रात से सोया जो नही था पर मुझे नींद ही नही आ रही थी रह रह कर बस वो लड़की ही याद आती उसका चेहरा मेरे आँखों के सामने होता जब भी मैं अपनी आँख बंद करता मुझसे रहा ही नही गया और मैं शाम को फिर हॉस्पिटल के लिए निकल पड़ा !

कहानी आगे जारी है। ....

नोट :- अगर आप (हमसफ़र) Humsafar का पहला भाग नही पढ़े है तो इस लिंक पे क्लिक करें -
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Md Danish Ansari

Friday, 2 February 2018

हमसफ़र .....

February 02, 2018 0 Comments

करीब रात के बारह बज रहे होंगे गर्मी पड़ रही थी इसलिए सोचा की थोडा बाहर टहल आऊं , बाहर टहलते टहलते कानो में हैडफ़ोन लगाये अपनी धुन में बस चलता रहा इस बात की फ़िक्र किये बगेर की मैं अपने घर से काफी दूर निकल आया हूँ ! कुछ ही दूर पे दरिया है बहुत ही खुबसूरत जगह है और उसका नाम भी काफी खुबसूरत है नीलम , नीलम नाम है उस दरिया का गर्मी के इस रात में भी यह जगह कितना सुकून दे रहा था मुझे गर्म हवा जब नीलम के पानी से टकराती तो ठंडी हो कर चारो तरफ सुकून भरा माहोल बना देती है ! यूँही काफी देर तक मैं दरिया के किनारे रेत पर बैठा रहा और आसमान को निहारता रहा कभी आसमान के चाँद को देखता तो कभी नीलम के आँचल में उसके प्रतिबिम्ब को देखता बहता हुआ पानी जब पत्थरो से टकराता तो कल-कल की आवाज़ कानो को मंत्र मुग्ध कर देती और बस फिर वही लेट गया मैं , और कब आँख लगी पता ही नही चला अभी कुछ ही देर हुआ होगा मुझे सोये हुए की पानी में जोर की आवाज़ हुई झडाम और मेरी नींद टूट गयी उठ कर बैठा तो देखा एक कार पूल से बड़ी तेज़ी से गुजर रही है ! मैं इधर उधर देखा फिर समय देखा तो रात के दो से ज्यादा बज रहे थे मैं उठा और नीलम के पानी से मुँह धोने लगा मैं अपना चेहरा धो ही रहा था की कोई चीज मेरे हांथो से टकराई और मैं झट से अपना हाँथ पीछे करके पानी में देखने लगा ! मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी मैं बिलकुल सन्न हो गया एक वक़्त के लिए तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा शरीर ही नहीं है बिलकुल भारहीनता का अनुभव हुआ मुझे डर के मारे  मेरे पसीने छूटने लगे थे ! तभी मैंने आव देखा न ताओ कूद पड़ा पानी में जबकि मुझे तैरना भी नहीं आता था और फिर उसे बाहर निकाला वो एक लड़की की लाश थी तब तक के लिए जब तक मैंने उसे बचाने के लिए साँसे नहीं भरी उसकी फेफड़ो में मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था बस कुछ भी करके उसे बचा लाने की एक जूनून सी थी बार बार अपने फेफड़ो में हवा भरता और उसके मुँह में छोड़ता ! यह तरकीब हमे कॉलेज के पहले साल में अग्नि शामक वाले लोगो ने सिखाया था फर्क सिर्फ इतना था की उस वक़्त हमारे सामने एक पुतला था और इस वक़्त एक पूरा इंसानी जिस्म मैं बयां नहीं कर सकता उस वक़्त मेरी क्या हालत थी डर भय घबराहट और परेशानी के उस आलम में कुछ सूझ ही नहीं रहा था कभी वहाँ से भागने की सोचता तो कभी उसे उठा कर हॉस्पिटल ले जाने के बारे में ख्याल करता मैं इसी कशमकश में था की अचानक उसने मेरा कालर पकड़ ली और अपनी आँखे फाड़ के एक पल के लिए मुझे देखी और फिर से बेहोश हो गयी ! मैं बुरी तरह डर गया था उसके इस तरह के अचानक जाग जाने से मैंने आओ देखा न ताओ उसे फ़ौरन उठाया अपने गोद में और दौड़ लगा दिया पक्की सड़क पर पहोचने के बाद मुझे सूझ ही नहीं रहा था की मैं किधर जाऊं इसे लेकर हॉस्पिटल जाऊं या फिर घर हॉस्पिटल दूर था और मैं पैदल था उसे इतनी दूर तो नहीं ले जा सकता था तो मैं मुड़ा और घर की तरफ भागने लगा मेरे हांथो में दर्द होने लगा उसे उठाये उठाये उसका शरीर फिसल रहा था तो मैंने उसे अपने गंधे पे लादा और दौड़ने लगा आखिर कार मैं घर पहुँचा और जल्दी से दौड़ के घर के अन्दर जा कर गाड़ी की चाबी ले आया और उसे कार में डाल कर बड़ी तेज़ी से कार दौड़ाने लगा इतनी रफ़्तार तो मैंने कभी छुआ ही नहीं था पर आज किसी की ज़िन्दगी और मौत का सवाल था शायद इसी लिए मेरे हाँथ पैर इस तरह से काम कर रहे थे जैसे कोई मशीन मैं उसे हॉस्पिटल पहुचाया और उसे गाड़ी से निकल कर अन्दर ले गया पागलो की तरह डोक्टर डोक्टर चिल्लाता हुआ ! वार्ड बॉय मिला वो मुझे उसे स्ट्रेचर पर लेटाने के लिए कहा और उसे लेटाने के बाद वह भाग कर डोक्टर के पास गया डोक्टर आया उसे देखा और पूछने लगा क्या हुआ इसे, मुझे नहीं पता मुझे ये दरिया में मिली पानी में बहते हुए ! ये तो पुलिस केस है हमे पुलिस को बताना होगा ? देखिये पहले आप इसे बचाए मैं खुद पुलिस को कॉल कर देता हूँ ठीक है और मैं कही नहीं जा रहा हूँ ओके सो प्लीज आप इसे बचाओ कुछ भी करके , डोक्टर उसे ऑपरेशन थिएटर में लेकर गए मैंने पुलिस को कॉल करने के लिए अपने जेब में हाँथ डाला मेरा मोबाइल मुझे नहीं मिला धत तेरी अब ये कहा गिर गया मैंने हॉस्पिटल से ही पुलिस को कॉल करके उन्हें बुलाया !

आगे जारी है......

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Md Danish Ansari

Thursday, 1 February 2018

चोला......

February 01, 2018 0 Comments

कोई हिन्दू बन रहा है कोई मुसलमान बन रहा है 
किसी को सिख बनना है तो किसी को ईसाई बनना  है 
हर कोई बस एक चोला ओढ़ लेने को तैयार बैठा है 
कोई पगड़ी पहन रहा है कोई पगड़ी उतार रहा है 
कोई मुछ बढ़ा रहा है कोई मुछ उतार रहा है 
सब एक से बढ़कर एक चोला ओढ़ने की दौड़ लगा रहा है 
कल तक जिनके माथे की शोभा तिलक नही थी 
आज वो लम्बा तिलक का क़ुतुब मीनार बना के निकलता है 
कल तक जिनके चहरो की शोभा दाढ़ी नही थी 
आज वो दाढ़ी लम्बा करने मैं हर दौड़ लगाता है 
कोई गले में माला ड़ाल रहा है कोई हाँथों में कड़ा 
सब के सब एक से बढ़कर एक चोला पहन रहे है 
मगर मैं कौन सा चोला ओढ़ूँ जो मुझपे अच्छा लगे 
दाढ़ी मुझ पर जचती नही और धोती मुझे पसंद नही 
मुझे भगवा भी पसंद है और हरा भी मैं किसे धारण करूँ 
मेरे घर में सब हरी सब्जियाँ भी खाते है और मांस भी 
तो फिर मैं किस खाने और पहनावे का विरोध करूँ 
सोचता हूँ लोग जिस तरह से रंगो को बाँट रहे है 
तो हरी सब्जियाँ मुस्लमान और लाल हिन्दू हो गयी 
इस जहाँ में सब एक से बढ़कर एक चोला ओढ़ रहे है 
नास्तिकतावाद की तरफ देखता हूँ तो मन झंझोरड़ता है 
क्योकि इस दिल में तो अब भी ईश्वर का वास् होता है 
हर दूसरा नौजवान खून बहाने को तैयार हो रहा है 
मगर वही वीर बनके खून बहाने वाला नौजवान 
रक्त दान में सबसे पीछे की कड़ी में भी नहीं दिख रहा है 
भारत माँ की जय जोर से जय जय कार कर रहा है 
मगर भारत को बेहतर बनाने के लिए पढ़ और गढ़ नही रहा है 
कोई पटेल को अपने में मिलाने के लिए झपट्टा मार रहा है 
कोई नेहरू को जी जान से निचे गिराने पे तुला है 
और कई तो गांधी को मिटा देने की शपथ ले रहा है 
मगर वह नौजवान सच जानने को पढ़ नही रहा है
किसी को नेहरू तो किसी को गांधी तो किसी को आंबेडकर चाहिए 
मगर कोई ये नहीं पढ़ रहा है की इन सभी को क्या चाहिए 
बस हर कोई गांधीवादी नेहरूवादी पटेलवादी आंबेडकर वादी 
चोला ओढ़े जा रहा है कल तक इनकी किसी को सुध नही थी 
और आज हर कोई बस इन्हे कुछ भी करके अपना बना रहा है 
गांधीवादियों में गांधी के विचार नही मिलते और न ही 
पटेलवादियों में पटेल जी के विचार नही मिलते 
नेहरूवादियों में नेहरू के समाजवाद का अंश नही मिलता
और न ही आंबेडकर वादियों में कही अम्बेडकरवाद नही दीखता 
बस हर कोई इनके नाम मात्रा का चोला ओढ़ना चाहता है 
मगर अब भी सवाल यही है मैं कौन सा चोला ओढ़ लूँ
कोई हिन्दू बन रहा है कोई मुसलमान बन रहा है 
किसी को सिख बनना है तो किसी को ईसाई बनना  है 
मुझे इन्सान बनना है इसके सिवा किसी की जरुरत नही है 
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नोट :- यह कविता किसी धर्म जाती संप्रदाय संस्कृति सभ्यता पर व्यंग नहीं है बल्कि यह उन लोगो पर कटाक्ष है जो धर्म का आड़ लेकर सारे कुकर्म कर रहे है यह ऐसे व्यक्ति है जो धर्म का "ध" भी नही जानते और उसके नाम पर लोगो में हिंसा घृण्डा हीन भावना नफरत फैला कर अपना उल्लू सीधा कर रहे है इसके बावजुद अगर किसी के दिल को ठेस पहुँची हो तो उसके लिए छमा का प्रार्थी हूँ !

Md Danish Ansari