लगभग शाम हो ही चली थी सूरज क्षितिज पे था मौसम सुहाना था खुशनुमा था मैं अपने दुकान में बैठे बैठे लोगो को आते जाते देखता रहा सुबह से शाम हो गयी और अभी तक मैंने दिन की पहली बोहनी नही किया था बार बार मैं आज के दिन को लेकर दुखी हो जाता फिर आसमान पर जैसे ही नज़र पड़ती दिल खुश हो जाता बहुत ही खूबसूरत सुहाना मौसम था ! मैं जवान था इसलिए यह ख्याल आया काश इस सुहाने मौसम में हमसफ़र साथ होता तो ये शाम और भी खूबसूरत होती फिर कुछ देर बाद मैंने मन ही मन में ये कहा छोडो यार ये इश्क़ फरमाने की बातें जब ज़ेब और पेट खाली हो तो ये इश्क़ और मोहब्बत ही साँप और बिच्छू बन कर डसने लगते है ! उसके बाद मैंने आँख बंद करके खुदा से दुआ करने लगा ए मेरे मालिक ए सारे कायनात को बनाने वाले इसके कर्ता धर्ता क्या तेरे इस गुनहगार बन्दे को आज क्या खाली हाँथ ही लौटा देगा क्या तू मुझसे इतना ख़फ़ा है की तू अपने बेसुमार खजाने से मुझे एक बून्द भी अता नही कर सकता मेरे गुनाहों को माफ़ कर मेरे मालिक और अपने इस गुनहगार बन्दे को अपने खजाने से कुछ हलाल-ए-रिज़्क़ अता कर दे ! इतनी सी दुआ करके मैंने अपनी आँख खोला तो देखा सामने एक खातून खड़ी है मेरे तरफ पीठ करके दूकान में कुछ देख रही है, मैं फ़ौरन कह उठा आपको कुछ चाहिए और वो पलटी मैं बस वही चित हो गया उसने सामान जो ख़रीदा सो ख़रीदा मैंने उस खातून के बेग में उसके ख़रीदे सामान के साथ अपना दिल भी पैक कर दिया और मुझे खबर भी न हुई आज वो खातून मेरी ज़िन्दगी और मौत दोनों जहाँ में हमसफ़र है और हम आज मिट्टी के छः फुट गड्ढे में दफ़्न है ! शुक्रिया ज़ुलेखा मेरा साथ निभाने के लिए शुक्रिया युसूफ मुझे अपने सफर का हमसफ़र बनाने के लिए शुक्रिया मेरे मौला हमे ये खूबसूरत ज़िन्दगी देने के लिए और शुक्रिया मौत से मिलाने के लिए मौत के बगैर ज़िन्दगी अधूरी है जैसे मैं और तुम !
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Md Danish Ansari
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