Thursday, 18 October 2018

आतंकवाद (वियतनाम युद्ध) 1955 - 1975 | Part 1

October 18, 2018 0 Comments
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Vietnam 1955
आतंकवाद की परिभाषा :- ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के द्वारा परिभाषित किया गया ऑक्सफ़ोर्ड के द्वारा परिभाषित आतंकवाद कुछ यूँ है- " राज्य या विरोधभाव को दबाने के लिए हिंसा या भयोत्पादक उपायों का अवलंबन"
सेकंड वर्ल्ड वॉर के ख़त्म होते ही दुनिया में दो मुल्को के बिच ताक़त और शक्ति विस्तार की होड़ शुरू हुई और आप जानते है की मैं किन दो मुल्को की बात कर रहा हूँ ! अमेरिका और रूस, सोवियत यूनियन के टूटने पर रूस की ताकत घट गयी और फिर अमेरिका की हुकूमत आयी पूरी दुनिया पर रूस लगा तार अपने पक्ष में देशों को एक जुट करता रहा वही दूसरी तरफ अमेरिका उसे तोड़ने और अपने साथ जोड़ने में लगा रहा !

विएतनाम युद्ध : 1 नवंबर 1955 को विएतनाम में युद्ध शुरू हुआ यह युद्ध शीतयुद्ध के दौर में लड़ा गया यह युद्ध दो अलग अलग विचार धरा को भी देखते हुए लड़ा गया अमेरिका पूँजीवाद का समर्थक है जबकि रूस और चीन मार्क्सवाद के ऐसे में उत्तरी वियतनाम को चीन और रूस का साथ मिला जबकि दूसरे खेमे दक्षिणी वियतनाम की और से अमेरिका और मित्र राष्ट्र लड़ रहे थे ! इस युद्ध की शुरुआत वियतनाम का फ्रांस के साथ आजादी के लिए लड़े गए नाकाम युद्ध से शुरू हुआ दूसरे विश्व युद्ध के बाद फ्रांस में इतनी ताकत नहीं थी की वह वियतनाम पर और ज्यादा देर तक के लिए अपना दबदबा बना कर रख सके ऐसे में विएतनाम दो भागो में बट गया उत्तरी विएतनाम सम्पूर्ण आजादी चाहता था साथ ही वह मार्क्सवादी था वही दूसरी और दक्षिणी वियतनाम था जो अमेरिका और मित्र राष्ट्रों की जी हुजूरी ही करता ! साथ ही दक्षिणी वियतनाम के शासक भ्रष्ट हो चुके थे उन पर कई गंभीर आरोप लग रहे थे ! वियतनाम कम्बोडिया चीन बर्मा और थाईलैंड से घिरा हुआ इन सब के बिच एक छोटा सा देश है लाओस उसने अपनी जमीन उत्तरी वियतनाम को दी उसके ऐसा करने पर अमेरिका इतना गुस्से में आया की उसने उस पर इतने बम गिराए जितना की उसने अफगानिस्तान और इराक युद्ध में भी नहीं गिराए ! जबकि लाओस खुद इस युद्ध में सीधे शामिल नहीं हुआ था लाओस में 1964 से लेकर 1973 तक अम्रेरीकी वायु सेना ने हर 8 मिनट में एक बम गिराए गए है ! मीडिया रिपोर्ट और इतिहासकारों के अनुसार अमेरिका ने 260 मिलियन क्लस्टर बम विएतनाम पर गिराए है जोकि इराक युद्ध में गिराए गए कुल संख्या का 210 मिलियन ज्यादा है ! अमेरिकी सेना द्वारा वियतनाम के लोगो का कत्ले आम हुआ और यह सब कुछ न्यूज़ में साफ़ साफ़ दिखाया जा रहा था अमेरिकी सेना ने एक बड़े पैमाने पर वियतनामी लोगो को मार डाला जबकि वो निहथ्थे थे और मासूम थे मरने वालो में सिर्फ पुरुष ही नहीं थे इसमें बड़ी संख्या में औरते बच्चे बूढ़े और नौजवान थे इनमे सबसे ज्यादा लोग खेती करने वाले आम किसान थे ! अमेरिकी सेना ने लगातार रासायनिक हथियारों की बम बारी की जिससे लाखो एकड़ खेत तबाहो बर्बाद हो गए और जंगल के जंगल तबाह होते गए ! यह सब किस लिए था सिर्फ इस लिए न की उत्तरी वियतनाम ये चाहता था की दोनों एक हो के रहे जैसे वो पहले थे या फिर सिर्फ ये की वियतनाम मार्क्सवाद को सपोर्ट करता था इस लिए और आपको रास नहीं आया तो आप ने उस पर हमला कर दिया ! अमेरिका को लगा था की वियतनाम कमजोर है इसलिए वह जल्द ही घुटने टेक देगा और युद्ध समाप्त हो जायेगा पर ऐसा नहीं हुआ वियतनाम का पलड़ा भारी होता रहा और अमेरिकी सैनिक मुँह की खाये ! वियतनाम में अमेरिका के इतने सैनिक मरे गए की खुद अमेरिका में इस युद्ध को लेकर विरोध प्रदर्शन होने लगे की हम अपनी जान ऐसे युद्ध में क्यों खतरे में डाले जो युद्ध हमारा है ही नहीं !

यह बात सच भी है की यह युद्ध किसी भी नजरिये से अमेरिका के लिए थी ही नहीं तो फिर अमेरिका क्यों जबरदस्ती इस युद्ध में कूद पड़ा ! अमेरिका खुद को  महान दिखने के लिए हमेशा ये कहता रहा है की दूसरे विश्व युद्ध में वह नहीं उतरता अगर जापान ने पर्ल हार्बर पर हवाई हमला न किया होता ! तो यही पर हम यह पूछना चाहते है की फिर आप विएतनाम के युद्ध में क्या कर रहे थे आप के सैनिक वियतनाम की आम जनता को क्यों मार रही थी ! इसीलिए न की वो लोग अमेरिका की सोच और उसके विचारो से सहमत नहीं थे बस इसी लिए न अपनी ताकत और दबदबे का रौब दिखाने के लिए आप ने लाओस जैसे छोटे और कमजोर देश को पूरी तरह क्लस्टर बम में जला कर राख कर दिया किसके लिए जाहिर है सिर्फ और सिर्फ अपने अहंकार की भूख को मिटाने के लिए और आज पूरी दुनिया में खुद को आतंक विरोधी के रूप में दिखाते हो पर सच तो यही है की अमेरिकी अर्थववस्था और उसका विकास गरीब और पिछड़े लोगो के शोषण और उनके संसाधनों को लूट कर ही फलता फूलता रहा है !

अब मैं चाहता हूँ की आप सबसे ऊपर "आतंकवाद" की परिभाषा को फिर से पढ़े जिसे ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी ने परिभाषित किया है ! ताकि आप यह समझ सके की दुनिया भर में कैसे आतंकवाद जन्म ले रहा है और कौन सी वो ताक़त है जो इसे बना रही है और इसे पनपने देने का पूरा मौका दे रही है ! वो भी सिर्फ और सिर्फ अपने राजनैतिक और आर्थिक भूख को मिटाने के लिए तुम गोली चलाओ तो सुरक्षा दूसरे गोली चलाये तो आतंकवाद !

राज्य या विरोधभाव को दबाने के लिए हिंसा या भयोत्पादक उपायों का अवलंबन" ही आतंकवाद है !
अर्थ : किसी राज्य या देश के लोगो के द्वारा विरोध को या उनके विरोधात्मक भाव को दबाने या कुचलने के लिए हिंसा या फिर उन्हें डराना धमकाना या ऐसे उतपात मचाना या फिर गलत प्रचार प्रसार करना जिससे समाज या व्यक्ति के मन में डर या भय फैले आतंकवाद कहलाता है ! 

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Md Danish Ansari

Thursday, 11 October 2018

बहुसंखयक समाज अल्पसंखयक समाज से क्यों डरता है

October 11, 2018 0 Comments
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Mera Aqsh
गोंडवाना लैंड के विभाजन से पहले सभी देश एक ही महाद्वीप का हिस्सा थे जिसे गोंडवाना लैंड कहा जाता है ! धरती के भाहरी परत में टूट और उसके बिखराओ ने बहुत सारी सीमाओं का सीमांकन किया एक तरफ जहा उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी अमेरिका का निर्माण हुआ वही दूसरी तरफ यूरोप महाद्वीप का निर्माण हुआ वही अफ्रीका का और कुछ इसी तरह एशिया महाद्वीप का निर्माण हुआ ! भारत जोकि कभी अफ्रीका से लगा हुआ था वह टूट कर हिन्द महासागर से होता हुआ चीन से जा कर टकराया पृथ्वी के बाहरी परतो का आपस में यूँ मिलना और उनका एक दूसरे के अंदर सरकना इसकी वजह से हिमालय का निर्माण हुआ ! आपको जान कर यह हैरानी होगी की यह खिसकाओ आज भी जारी है और हर साल माउन्ट एवेरेस्ट की उचाई करीब आधा सेंटीमीटर बढ़ जाती है ! 

इसके बाद दुनिया के अलग अलग हिस्सों में अलग अलग महान सभ्यताओं का विकास हुआ जिसमे सबसे पुरानी सभ्यता थी मेसोपोटामिया उसके बाद मिश्र की सभ्यता फिर भारत की हड़प्पा और मोहन जोदरो की सभ्यता फिर चीन की सभ्यता और फिर अमेरिका की माया सभ्यता और इन सभ्यताओं में सबसे पहले जिन दो सभ्यताओं का मिलन हुआ वो थी मेसोपोटामिया और मिश्र की सभ्यता यह इस लिए भी संभव हुआ क्योकि दोनों सभ्यताओं की सरहद लगभग सटी हुई थी ! कई विद्वानों का तो यह भी कहना है की मेसोपोटामिया सभ्यता ही मिश्र की सभ्यता है पर इसमें बहुत विवाद है ! उसके बाद मिश्र से अरब का विकास हुआ और अरबो का आना जाना भारत में हुआ जिससे अब दुनिया की तीन सबसे बड़ी सभ्यताएं एक दूसरे के सम्पर्क में आ चुकी थी अरब भारत से ववपार करते थे ! जबकि दुनिया की दो और सभ्यताएँ हम उनसे और वो हमसे बिलकुल अछूते थे क्योकि एक तरफ हिमालय था तो दूसरी तरफ विशाल समुद्र शायद यही वजह रही की इन सभ्यताओं का आपस में मिलान नहीं हुआ बहुत लम्बे वक़्त के लिए !

दुनिया बदलती गयी उसके साथ ही सभ्यताएँ विकास करने लगी वहाँ भी जीवन पनपा जहा जीवन की कोई सम्भावना ही नहीं होनी थी ! समय और अंतरिक्ष ने मानव जाति को विकास करने और आगे बढ़ने का पूरा मौका दिया और उसका हमने भरपूर उपयोग भी किया और इसी के साथ दुनिया भर के अलग अलग हिस्सों में राज व्यवस्था का उदय हुआ सब एक से बढ़ कर एक थी और सभी ने अपना शक्ति विस्तार किया दुनिया में शायद ही कोई ऐसी रजवावस्था होगी जिसने अपने शरहद और शक्ति का विस्तार न किया हो और इसी शक्ति और सिमा विस्तार में कई अलग अलग संस्कृति आपस में टकराई ! भौतिक विज्ञानं में हमे पढ़ाया जाता है की जब दो पार्टिकल्स आपस में टकराते है तो पहले विनाश होता है फिर उसी विनाश से निर्माण का काम शुरू होता है ! यही नियम दुनिया भर की सभ्यताओं का आपस में टकराना और उनका विध्वंश होना और उनके विध्वंश से फिर नयी संस्कृति और राजवावस्था का जन्म होना इसका प्रमाण है !

खैर वक़्त के साथ सब कुछ बदलता है हमारी पूरी दुनिया बदल गयी फिर आया हमारा युग जिसे हम आधुनिक युग कहते है ! इसी आधुनिक युग की शुरुआत में राष्ट्रवाद की शुरुआत हुई वैसे इस आधुनिक युग से पहले राष्ट्र की अवधारणा तो थी मगर वह उतनी मजबूत नहीं थी जब तक राष्ट्रवाद की अवधारणा सामने न आयी फिर उसके बाद दुनिया भर में राष्ट्रवाद के नाम पर बहुसंख्यक समाज अल्पसंख्यक समाज के साथ राष्ट्रवाद के नाम पर सिर्फ और सिर्फ बर्बरता ही दिखाई है ! यह बात मैं किसी एक देश के लिए नहीं कह रहा यह दुनिया भर के मुल्को पर फिट बैठता है फिर चाहे वो यूरोप में यहुदिओं का कत्लेआम हो या फिर अमेरिका में गोरे लोगो के द्वारा काले लोगो का शोषण ! आप दुनिया के हर एक मुल्क का इतिहास और उसका आज देख लीजिये कल भी बहुसंख्यक समाज एक झूठे डर का सहारा लेकर अल्पसंख्यक समाज को कुचलता रहा है और आज भी वही हो रहा है ! यह अल्पसंख्यक समाज सिर्फ धर्म के आधार पर नहीं है बल्कि कही रंग के आधार पर है तो कही नस्ल के आधार पर कही संस्कृति के आधार पर तो कही भाषा के आधार पर मेरे कहने का तात्पर्य यह है की बहुसंखयक समाज हमेशा अल्पसंखयक समाज का शोषण करता रहा है किसी एक वक़्त या जगह पर यह अपवाद हो सकता है !

मगर ज्यादातर यही देखा और पाया गया है एक ही जैसी सोच मान्यता संस्कृति सभ्यता और भाषा बोलने और उन्हें फॉलो करने वाले लोग हमेशा से अपने से अलग लोगो से डरते रहे है ! उनका ये डर जोकि बेबुनियाद है अक्सर आक्रामक हो जाता है फिर शुरू होता है कत्लेआम का वो दौर जिसमे इंसानी ज़िन्दगी का कोई महत्व नहीं रह जाता ! अब सवाल यह है की बहुसंख्यक समाज भला अल्पसंखयक समाज के लोगो से डरता क्यों है ? इसकी वजह साफ़ है हम इंसानो ने अपने अंदर ही एक तरह का सुरक्षा कवच तैयार कर लिया है जिसे हम दिमाग की प्रोगरामिंग करना कह सकते है ! हम अपने दिमाग को इसी बात में यकीं दिलाते रहते है की जो हमारे जैसा दीखता है उनसे हमे कोई खतरा नहीं यहाँ दिखने का मतलब हर तरह के स्तर पर है जैसे धर्म जाती संस्कृति नाम रहन सहन पहनावा खाना पीना इत्यादि ! जहा उनके बिच कोई ऐसा व्यक्ति आ जाता है जिसका नाम अलग है पहनावा अलग है बोलने खाने पिने रहन सहन सब कुछ भिन्न है, वैसे ही बहुसंख्यक समाज सुरक्षा की मुद्रा में आ जाता है जबकि यह बात सच है की उसे किसी तरह का खतरा नहीं है ! इसके बावजूद वह हर कीमत पर सामने वाले को कुचल देना चाहता है वही अगर उन्ही के जैसा कोई व्यक्ति भले ही उन्हें ज़िन्दगी भर छलता रहे उनका शोषण करता रहे फिर भी वह उसमे विश्वास दिखाते है और यह कहने में कुछ गलत नहीं की यह आधुनिक समाज में लोगो की सबसे निचले स्तर की मूर्खता मात्र है !

नोट : आप मेरे विचारो से असहमत हो सकते है !

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Md Danish Ansari

Saturday, 6 October 2018

आज़ाद हूँ

October 06, 2018 0 Comments
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Mera Aqsh
आज़ाद हूँ परवाज हूँ हर बात की मैं काट हूँ 
रोके ज़माना मेरे कदम क़तरा क़तरा कहे मैं आज़ाद हूँ 
आज़ाद हूँ परवाज हूँ हर बात की मैं काट हूँ 
आँधियाँ क्या मोड़े मुझे मैं खुद ही तूफान हूँ 
आज़ाद हूँ। ......... आज़ाद हूँ। ......... आज़ाद हूँ 
कितने दिनों से मेरे पर क़तरता रहा है ज़माना यहाँ 
खामोश मैं सहमी हुई डरपोक मैं डरी हुई 
अब कहा वो डर है अब कहा वो दहशत दिल में है 
आज़ाद हूँ। ......... आज़ाद हूँ। ......... आज़ाद हूँ 
नोचते रहे हो तुम गोश्त मेरे सीने से 
अब ये बताओ मुझे क्या मिला है तुम्हे 
प्यास तेरी बुझती नहीं आग तेरी ठण्डी पड़ती नहीं 
फिर तो बेकार मेरा यूँ खामोश मर जाना मेरा 
आज़ाद हूँ परवाज हूँ हर बात की मैं काट हूँ 
आज़ाद हूँ परवाज हूँ हर बात की मैं काट हूँ 
आज़ाद हूँ। ....... आज़ाद हूँ। ......... आज़ाद हूँ 
आज़ाद हूँ !


Md Danish Ansari