Mera Aqsh |
घर के बाहर थोड़ी दूर पे एक विशाल बड़ (बरगद) का पेड़ है वो इतना विशाल है कि उसकी शाखाओं के नीचे आस पास के कई घर आते थे अक्सर बारिश के मौसम में लोगो को अपने घरों की छत को साफ करना पड़ता था क्योंकि उसकी पत्तियाँ छत पे पानी को बहने नही देती थी। गर्मी के मौसम में सब उसके नीचे जा कर आराम करते लाइट गोल होती तो उसके चबूतरे पर लोग लेटे रहते उसकी शाखाओं पर मधुमखियों के कई छत्ते थे जो शहद से भरे रहते हर सुबह और शाम को अलग अलग तरह की चिड़ियों की आवाज़ होती वो उसी पर रहते फिर एक दिन जोर की हवा चली और उसकी एक डाल टूट कर नीचे गिर गई कोई जख़्मी नही हुआ और न ही किसी का घर टुटा मगर लोगो के दिलों का डर उस पेड़ के लिए मुसीबत हो गई पहले उसकी एक शाख को काटा गया लोग उसे लेकर अब बुरा भला ही बोलते की ये पेड़ यहाँ नही होना चाहिये वगेरा वगैरा और देखते ही देखते वह बड़ का पेड़ सूखने लगा उसकी शाखाएँ सुख गयी लोगो ने उसे कटवाना शुरू किया और देखते ही देखते उस पेड़ का सिर्फ अब तना ही रह गया। अब न तो मधुमखियों के छत्ते है और न ही सुबह शाम को चिड़ियों की आवाज़ बस एक खामोशी है वो पेड़ अब बढ़ नही रहा उसकी तने पे कुछ पत्तियाँ फूटती तो है फिर सुख कर झड़ जाती है। शायद वह अब डर गया है उसने इंसान की कुल्हाड़ी की धार जितनी महसूस न कि होगी उससे ज्यादा उनकी जली कटी बाते महसूस की होगी। इस साल गर्मी में जब सूरज ने आग बरसाया तो सबको उस पेड़ की छाँव याद आ ही गई।
यह सब देख कर मुझे अपने अंदर का वो हिस्सा नज़र आया जो हम इंसान अक्सर सभ्य दिखने के लिए छुपाने की कोशिश करते है। वह पेड़ न जाने कितने सालों से वहाँ था न जाने उसने कितनी बारिशें देखी होंगी वह पेड़ उस जगह पर तब से था जब वहा इंसान की बस्ती तो क्या कोई इंसान भी नही था। अब सब कहते है अरे ये पेड़ था तो कितना सुकून था अब सभी को उस पेड़ की छाँव याद आती है।
नोट: यह लघु कथा सच्ची घटना पर आधारित है।
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Md Danish Ansari
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